Independence Day: अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की कविताएं यूं तो आज भी लोगों में ऊर्जा का संचार करती हैं यहां तक कि तमाम कविताएं उनके विरोधी भी गुनगुनाते नजर आते हैं. लेकिन अटल जी की 2 कविताएं ऐसी हैं, जो केवल राष्ट्रवादियों को बहुत ही ज्यादा पसंद आती हैं
Independence Day: इन दोनों कविताओं को को लेकर भाजपा विरोधी हमेशा आलोचना करते आए हैं, यहां तक कि पाकिस्तानियों को भी काफी चिढ़न महसूस होती है. इनमें से एक कविता है- ‘ हिंदू तन मन हिंदू जीवन रग रग हिंदू मेरा परिचय..’ जबकि दूसरी कविता है आजादी अभी अधूरी है.. अटलजी ने यह कविता जिस वक्त लिखी थी, जब उन्हें बहुत कम लोग ही जानते थे ये कविता उन्होंने एक बड़े ही खास मौके पर लिखी थी.
Independence Day: वो दिन आजादी का पहला दिन था , 15 अगस्त 1947 का वो दिन. जब देश आजाद हुआ ही था, देश में दिन भर हर्षोल्लास का माहौल रहा, लेकिन कहा जाता है कि उस वक्त अटल जी कानपुर में डीएवी कॉलेज के हॉस्टल में निराश बैठे थे. वे अखंड भारत की आजादी चाहते थे और देश के बंटवारे के खिलाफ थे. उन्होंने एक कविता लिखी- ‘स्वतंत्रता दिवस की पुकार’।
(Independence Day) पर पढ़ें आजादी अभी अधूरी है
Independence Day:
पंद्रह अगस्त का दिन कहता – आजादी अभी अधूरी है
सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है
जिनकी लाशों पर पग धर कर आजादी भारत में आई
वे अब तक हैं खानाबदोश गम की काली बदली छाई
कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आंधी-पानी सहते हैं
उनसे पूछो, पंद्रहअगस्त के बारे में क्या कहते हैं
हिंदू के नाते उनका दुख सुनते यदि तुम्हें लाज आती
तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहां कुचली जाती
इंसान जहां बेचा जाता, ईमान खरीदा जाता है
इस्लाम सिसकियां भरता है,डॉलर मन में मुस्काता है
भूखों को गोली नंगों को हथियार पहनाए जाते हैं
सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं
लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया
पख्तूनों पर, गिलगित पर है गमगीन गुलामी का साया
बस इसीलिए तो कहता हूं आजादी अभी अधूरी है
कैसे उल्लास मनाऊं मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएंगे
गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएंगे
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें
जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें
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