ऑर्गेनिक खेती: रूबी पारीक ने दौसा में अपने परिवार के कई एकड़ के केमिकल-आधारित खेत को फलों, सब्जियों और अनाज के ऑर्गेनिक खेत में बदल दिया है। वह हर महीने 200 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट और अजोला फर्न बेचती हैं। उन्होंने 15,000 से ज्यादा लोगों को मुफ्त में प्रशिक्षित किया है।
ऑर्गेनिक खेती: रूबी पारीक राजस्थान के दौसा की रहने वाली हैं। रूबी के पिता की कैंसर से मौत हो गई थी। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने जैविक सब्जियां उगाना शुरू कर दिया। इसके जरिये उन्होंने अपने परिवार के खेत की इनकम को दोगुना कर दिया। उनके पांच और भाई-बहन हैं। विधवा मां ने उन्हें पाल-पोस कर बड़ा किया। यही वजह थी कि रूबी पारीक का बचपन कठिन था। वह जब एक साल की थीं तो उनके पिता का साया सिर से उठ गया था। परिवार के पास सब्जी खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे। उन्हें सूखी रोटी और चटनी खाकर सोना पड़ता था।
पिता की मौत के बाद रूबी को करना पड़ा संघर्ष
रूबी के परिवार के पास 150 बीघा जमीन थी। लेकिन, परिवार को पिता के इलाज के लिए अपनी ज्यादातर संपत्ति और सारी बचत बेचनी पड़ी। पिता की मौत के बाद एक-एक पैसे के लिए परिवार को संघर्ष करना पड़ा। उनके समाज में महिलाओं को काम करने के लिए घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। इसलिए, जो भी बचत बची थी, उसी से उनकी मां ने 5 बच्चों का पालन-पोषण किया।
10वीं क्लास तक ही पढ़ सकीं रूबी
आर्थिक तंगी के कारण रूबी 10वीं क्लास के बाद पढ़ाई नहीं कर सकीं। 20 साल की उम्र में उनकी शादी एक किसान परिवार में हुई। वहां उन्हें सशक्तिकरण की भावना महसूस हुई। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने ससुराल में परिवार को लगभग 26 एकड़ जमीन को प्रॉफिटेबल ऑर्गेनिक खेत में बदलने में मदद की। 2006 में स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) की एक टीम ने उनके परिवार के खेत पर गेहूं की विभिन्न किस्मों पर कार्यशाला का आयोजन किया। जिज्ञासावश उन्होंने अधिकारियों से पूछा कि क्या रसायन आधारित खेती का कोई विकल्प है।
ऑर्गेनिक खेती से शुरुआत में नहीं मिली अच्छी पैदावार
हालांकि, रूबी के लिए यह बदलाव लाना इतना आसान नहीं था। रुढ़िवादी पृष्ठभूमि से आने वाली रूबी से उनकी क्षमताओं को लेकर सवाल किए गए। अपनी ससुराल वालों को जब उन्होंने बताया कि वह अपनी जमीन पर जैविक खेती का प्रयोग करना चाहती हैं तो उन्होंने मजाक उड़ाया। ससुर ने सवाल किया कि ऐसा करके वह क्या हासिल करेंगी।
लेकिन, पति के सहयोग से वह एक बीघा जमीन के साथ अपना प्रयोग शुरू करने में सफल रहीं। अफसोस की बात यह है कि शुरुआती 2-3 साल तक उन्हें अच्छी पैदावार नहीं मिल सकी। पहले वर्ष में उपज तुलनात्मक रूप से बहुत कम थी। एक बीघे जमीन से रसायनों के प्रयोग से 12 क्विंटल गेहूं मिलता था। लेकिन, जैविक उर्वरक के साथ लगभग आठ क्विंटल ही प्राप्त हो पाया।
ऑर्गेनिक खेती: फिर सोना उगलने लगा खेत
कम मुनाफे की परवाह किए बिना रूबी ने ऑर्गेनिक खेती तरीके से खेती करना जारी रखा। जीवामृत (गाय के गोबर और मूत्र से बना एक तरल जैविक उर्वरक), गोबर और वर्मीकम्पोस्ट जैसी खाद का उपयोग किया। उन्हें पता था कि शुरुआत में अच्छी उपज नहीं मिलेगी। कारण है कि मिट्टी को ठीक करने में समय लगता है। चार साल की मेहनत के बाद रूबी को अच्छी उपज मिलने लगी। इससे उन्हें दोगुनी आय होने लगी। आज वह पूरे 26 एकड़ के पारिवारिक खेत को प्रॉफिटेबल ऑर्गेनिक खेती में बदलने में सक्षम हो गई हैं।
इसी तरह आपके काम की खबरें आप तक हम पहुंचाते रहेंगे…
Whatsapp पर जुडने के लिए यहाँ दबाएं
Facebook पर हमसे जुड़ें, यहाँ दबाएं