हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र प्राप्ति जरूरी मानी गई है। माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका कनागत करने का विशेष विधान बताया गया है।
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भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के दिनों को कनागत (पितृपक्ष) कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। 29 सितंबर से कनागत की शुरुआत हो चुकी है और इस दौरान पूर्वजों को याद करके उनके नाम का अनुष्ठान किया जाता है।

क्या है कनागत की मान्यता
माना जाता है कि कनागत में पितर धरती पर आते हैं। माना जाता है कि कनागत में पितरों का संबंध प्रकृति से भी होता है। कनागत में मनुष्य से लेकर पक्षी तक कई रूपों में पितर आपके द्वार पर दस्तक दे सकते हैं। बस हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। ते चलिए जानते हैं कि कनागत में पितर आपके घर में किन किन रूपों में आ सकते हैं।
कौए (कनागत)
कनागत में घर आए कौए को कभी भगाना नहीं चाहिए बल्कि कौए को भोजन दें। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो पितर नाराज हो सकते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कनागत में 15 दिन तक कौए के द्वारा ही पितर अन्न ग्रहण करते हैं। इससे न उनकी तृप्ती होती है और वो परिजनों को खुशहाल जीवन का आशीर्वाद भी देते हैं।

गरीब या जरूरतमंद (कनागत)
कनागत के समय घर में कोई मेहमान, गरीब और असहाय व्यक्ति आपको द्वार पर आए तो उसका कभी अनादर न करें। इनके लिए भोजन की व्यवस्था करें।

कुत्ता या गाय (कनागत)
कनागत में गाय और कुत्ते का द्वार पर आना शुभ माना जाता है। अगर ये रास्ते में भी दिख जाए तो इन्हें मारकर भी नहीं भगाना चाहिए बल्कि कुछ न कुछ खाने को जरूर दें।

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