Cow Dung Rakhis: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बिछिया ब्लॉक में 20 महिलाओं के एक समूह द्वारा द्वारा देशी गाय के गोबर से रखियां (Cow Dung Rakhis) बनाई जा रही हैं। ये महिलाएं अभी तक इन राखियों के माध्यम से 45000 से ज्यादा की कमाई भी कर चुकी हैं। ये राखियां पूरी तरह से इको फ्रेंडली हैं।
HIGHLIGHTS

इस बार रक्षाबंधन के त्योहार पर भाइयों की कलाई पर चीन की बनी राखी नहीं बल्कि देशी गाय के गोबर से बनी राखियां (Cow Dung Rakhis) सजेंगी। बाजार में बिकने वाली ज्यादातर राखियां चाइनीज होती हैं, लेकिन इस बार इन राखियों के साथ-साथ बाजार में गाय के गोबर से बनी राखियां भी खूब छाई हुई हैं। गाय के गोबर को विशेष पहचान दिलाने के लिए यूपी में महिला समूहों के माध्यम से राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत उन्नाव जनपद में रखियों पर विशेष काम किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बिछिया ब्लॉक में अपराजिता महिला समूह की महिलाओं ने इस बार खास किस्म की राखियां बनाई हैं जो पूरी तरीके से स्वदेशी हैं और गाय के गोबर से बनी हुई हैं। अभी तक इन महिलाओं के समूह द्वारा बनाई गई 10000 से ज्यादा राखियों की बिक्री हो चुकी है। बाजार में ये राखियां आठ रुपये से लेकर 150 रुपये तक की कीमत में बिक रही हैं। इन राखियों को बनाने में बैंगन, तुलसी और टमाटर की बीजों का भी उपयोग किया गया है। ये बीज बाद में सब्जी उगाने के काम में भी आ सकते हैं।
गाय के गोबर से बनी राखियां (Cow Dung Rakhis)

उन्नाव जनपद में राष्ट्रीय आजीविका मिशन के अंतर्गत महिलाओं के समूह के द्वारा गाय के गोबर से कई तरह के उत्पाद का निर्माण किया जा रहा है। रक्षाबंधन के मौके पर समूह की महिलाएं गाय के गोबर से बहुत सुन्दर राखियां बना रही हैं। लेकिन गोबर से बनी हुई ये राखियां पूरी तरीके से पर्यावरण के लिए भी अनुकूल हैं। इन राखियों को इस्तेमाल करने के बाद गमले में डालकर खाद के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। गोबर से बनी राखियों की खासियत को देखकर बाजार में इनकी खूब डिमांड भी है। उन्नाव जिले के जिला मिशन प्रबंधक सुनील सिंह ने जानकारी दी है कि अभी तक उनकी 10000 से ज्यादा राखियों की बिक्री हो चुकी हैं।
राखियों से मिली महिलाओं को पहचान
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में अपराजिता सी एल एफ से जुड़ी 20 ग्रामीण महिलाओं ने राखी निर्माण का प्रशिक्षण लिया। अभी तक समूह से जुड़ी महिलाओं के द्वारा 10000 से ज्यादा राखियों का निर्माण किया जा चुका है। Cow Dung Rakhis बनाकर इन महिलाओं उत्कृष्ट कार्य किया है जिसके लिए पूरे प्रदेश में महिलाओं को नई पहचान मिली है। जिले में अपराजिता महिला समूहों ने स्थानीय बाजारों से लेकर धार्मिक स्थलों और सोशल नेटवर्किंग का भी सहारा लेकर 10000 राखियों की बिक्री कर दी है।

गोबर से बनी हुई ये राखियां बाजार में उपलब्ध अन्य राखियों के मुकाबले काफी सस्ती हैं। एक सामान्य राखी की कीमत आठ रुपये है जबकि जरी, रेशम और मोतियों से बनी हुई अन्य राखियों की कीमत 150 रुपये तक भी रखी गई है। उन्नाव जनपद के बिछिया ब्लॉक की मिशन प्रबंधक सोनम चंदेल और संजय राजपूत ने भी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में अपना सहयोग दिया है। महिलाओं के द्वारा बनाए ये उत्पाद राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रहे हैं।
Cow Dung Rakhis बनाने का लिया था प्रशिक्षण

राखी बनाने वाले समूह की महिला रचना ने बताया कि उन्हें बहुत खुशी हो रही है कि गोबर से बनाई गई उनकी राखी काफी पसंद की जा रही हैं। वहीं दूसरी महिला दीपिका का कहना है कि गोबर से उत्पाद बनाने के लिए उन्हें दो महीने का प्रशिक्षण दिया गया था जिसके बाद उनके समूह की 20 से ज्यादा महिलाओं की किस्मत बदली है।
राखियां बन जाती हैं पौधे
(Cow Dung Rakhis) इन राखियों को बनाने में तुलसी, टमाटर और बैंगन के बीजों का भी उपयोग किया गया है, इन राखियों का उपयोग करने के बाद जब इन्हें गमले में डाल देंगे तो तुलसी, टमाटर और बैंगन के पौधे उग सकते हैं। गोबर से बनी राखियां इन पौधों के लिए खाद बन जायेगी।