Gandhi Jayanti 2023: सत्य, सेवा, समानता, सद्भावना, सद्विवेक, सादगी, सफाई, सर्वोदय, सह-अस्तित्व के प्रतिमूर्ति महात्मा गांधी कर्मयोगी, व्यावहारिक, अहिंसावादी, आदर्शवादी तथा प्रयोगवादी थे। उनका दर्शन, उनका पथ, उनकी साधना और प्रयोग सभी की अभिव्यक्ति उनके सत्य, अहिंसा, प्रेम शब्दों में व्यक्त है। गांधी जी के अनुसार अहिंसा आत्मशक्ति है जो सत्याग्रही के लिए सत्य के साक्षत्कार का साधन है। साधनों की पवित्रता के साथ-साथ साध्य की पवित्रता पर भी जोर दिया है। गांधी जी ने अपने राजनीतिक दर्शन में रामराज्य के जरिए स्वराज्य स्थापित करने का प्रयास किया है। स्वराज्य से तात्पर्य सबके लिए व सबके कल्याण के लिए होगा। गांधी का मानना था कि मेरे सपने का स्वराज्य तो गरीबों का स्वराज्य होगा। जीवन की जिन आवश्यकताओं का उपयोग राजा और अमीर लोग करते हैं, वही तुम्हें भी सुलभ होनी चाहिए इसमें फर्क के लिए स्थान नहीं हो सकता। इसके आगे गांधी जो कहते हैं वह उनके इस बयान को उनकी समानता की विचारधारा के बिल्कुल विपरीत साबित कर देता है आगे गांधी कहते हैं कि इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे पास उनके जैसे महल होने चाहिए। सुखी जीवन के लिए महलों की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन तुम्हें वह सामान्य सुविधा अवश्य मिलनी चाहिये, जिनका उपयोग अमीर आदमी करता है। इससे तात्पर्य यह निकलता है कि गांधी समानता तो चाहते थे लेकिन केवल वहीं तक जहाँ तक कि व्यक्ति की मूलभूत या सामान्य आवश्यकता पूरी हो पाए। (Gandhi Jayanti 2023)
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गांधीजी ने ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा था, जहाँ पूर्ण सुशासन और पारदर्शिता हो। गांधी जी का मानना था कि, ‘‘रामराज्य से मेरा मतलब हिंदू राज नहीं है। मेरे रामराज्य का अर्थ है- ईश्वर का राज्य। मेरे लिये, राम और रहीम एक ही हैं, मैं सत्य और धार्मिकता के ईश्वर के अलावा किसी और ईश्वर को स्वीकार नहीं करता। चाहे मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर रहे हो या न रहे हो, रामायण का प्राचीन आदर्श निस्संदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है, जिसमें एक बहुत बुरा नागरिक भी एक जटिल और महंगी प्रक्रिया के बिना त्वरित न्याय को लेकर आश्वस्त हो।‘‘ एक अन्य व्यक्तव्य में गांधी जी कहते हैं कि, ‘‘मेरे सपनों की रामायण, राजा और निर्धन दोनों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करती है।‘ फिर 2 जनवरी 1937 को हरिजन में उन्होंने लिखा, ‘मैंने रामराज्य का वर्णन किया है, जो नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है।‘‘ (Gandhi Jayanti 2023)
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गांधीजी ने हमारे पारिस्थितिकीय तंत्रों को संरक्षित करने, जैविक और पर्यावरण हितैषी वस्तुओं का उपयोग करने तथा पर्यावरण पर किसी भी तरह का दबाव न पैदा करने के लिये संतुलित उपभोग पर बहुत जोर दिया। पारिस्थितिकी एक ऐसा विषय है जो जीवित जीवों और उनके पर्यावरण के बीच संबंधों को समझने का प्रयास करता है। मानव पारिस्थितिकी मनुष्य और उसके पर्यावरण को एक एकीकृत समग्रता के रूप में देखती है। हर चीज को अलग-अलग श्रेणियों में बाँटने की पश्चिमी प्रवृत्ति पारिस्थितिक दृष्टिकोण से सहमत नहीं है। गांधीजी हर चीज को परस्पर संबद्ध रूप से देखते थे। उनके लेखन में, हम अर्थशास्त्र, राजनीति और समाजशास्त्र के तत्वों को नैतिकता द्वारा सूचित अंतर्संबंध से परिपूर्ण पाते हैं। गांधी ने कहा- ‘‘मैं अद्वैत में विश्वास करता हूँ , मैं मनुष्य की आवश्यक एकता में विश्वास करता हूँ और उस मामले में सभी जीवित चीजों की एकता में विश्वास करता हूँ।‘‘ (Gandhi Jayanti 2023)
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यदि हम गाँधी के सपनों के भारत की बात करें तो क्या हम यह सकते हैं की वर्तमान भारत गाँधी सपनों के भारत की राह पर चल रहा है? क्या वर्तमान सुशासन में गाँधी के रामराज्य की नैतिक मानवीय जीवन को जीने के लिए आवश्यक हैं यथा- स्वतन्त्रता, समानता, बंधुत्व, विद्यमान है? क्या वर्तमान भारत प्रकृति पर बोझ बन गया है? क्या वर्तमान भारत में हम सुशासन और पर्यावरण के माध्यम से वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श की प्राप्ति कर पा रहे हैं?
वैदिक काल से वर्तमान काल तक सदा सभी कालों में मानवीयतापूर्ण बातों का समर्थन किया गया लेकिन व्यवहार में सदा उन्हीं बातों का समर्थन किया गया है जो उच्चवर्ग या यह कह सकते हैं कि जो सत्ता वर्ग के लिए लाभपूर्ण रही हो। (Gandhi Jayanti 2023)
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जैसा कि विदित है कि लोकतंत्र में सभी को समान माना गया है। अतः वर्तमान व्यवस्था में हम उन प्राचीन धारणाओं को नहीं अपना सकते जो मानव-मानव में भेद स्थापित करें। इसलिये हमें भी गांधीजी का अनुकरण करते हुए अपनी जरूरतों को तर्कसंगत बनाने के तरीकों पर चर्चा करनी चाहिये और गांधीजी के विचारों और दर्शन को अपनी आर्थिक नीति और दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने का प्रयास करना चाहिये। गाँधी जी ने सुशासन एवं पूर्ण स्वराज को प्राप्त करने के लिए अपने रचनात्मक कार्यक्रम के माध्यम से स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के भाव से देश के भविष्य की कल्पना की। भारतीय संविधान सभा द्वारा भी गाँधी जी के इन भावों का स्पष्ट उल्लेख संविधान की प्रस्तावना, जो ‘हम भारत के लोग‘ से शुरू होती है, में किया गया है। वर्तमान भारत में सुशासन की संकल्पना संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों की शत-प्रतिशत प्राप्ति से की जाती है। समकालीन समय में आवश्यक सतत विकास का विचार विकास की गांधीवादी दृष्टि से मेल खाता है, लेकिन कई मायनों में यह एक-दूसरे से अलग भी है। गांधी जी द्वारा निर्धारित अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास की स्थानीय प्रकृति का महत्त्व सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शक शक्ति हो सकता है। अपने सामाजिक जीवन की यात्रा में मनुष्य ने आज जिस सभ्यता के उच्चतम पायदान को छुआ है उसमें समाज की व्यवस्था के लिए कुछ पद्धतियों का निर्माण क्रांतिकारी था। झुंड और कबीलों में रहने वाला आदमी शारीरिक शक्ति को ही सब कुछ मानता था और जिसमें सबसे ज्यादा ताकत होती थी उसी का रूतबा रहता था। शासन का कोई भी सिद्धांत तब तक कारगर नहीं समझा जा सकता, जब तक कि उसे उसके समकालीन समय में न परखा जाए। (Gandhi Jayanti 2023)
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यह जरूरी है कि नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में स्वतंत्र, खुले और पूर्ण रूप से भाग लेने का अधिकार मिले। सुशसान स्थाई राजनीतिक नेतृत्व, कारगर नीति निर्माण और सिविल सेवा पेशेवर लोकाचार के माध्यम से ही संभव है। सुशासन के लिए एक मजबूत नागरिक समाज, स्वतंत्र प्रेस और स्वतंत्र न्यायपालिका का होना पूर्व शर्तें हैं। समाज में ही प्रशासन की अवधारणा निहित है और समाज का स्वरूप प्रशासन के अनुरूप ढलता है तथा प्रशासन ही समाज के स्वरूप को व्यक्तकरता है। समाज के समुचित विकास, उसकी शांति एवं समृद्धि के लिए सुशासन पहली शर्त होती है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास‘ के मंत्र के साथ सुशासन के लिए सरकारी स्तर पर नागरिकों को सशक्त बनाने की दिशा में ठोस प्रयास शुरू हो चुके हैं, जिनकी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है-‘डिजिटल इंडिया‘। डिजिटल इंडिया का लक्ष्य देश को डिजिटल रूप से अधिकार सम्पन्न समाज एवं ज्ञान अर्थव्यवस्था के रूप में बदलना है। सुशासन के न्यायसंगत एवं समावेशी स्वरूप को ध्यान में रखते हुए ही प्रधानमंत्री जन धन जैसी योजनाओं का सूत्रपात किया गया है, ताकि लाभ अंतिम तबके तक पहुंचे। सुशासन की दिशा में सभी मंत्रालयों द्वारा सभी नियमित जानकारी और डेटा का सक्रिय प्रकाशन ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक कार्यपालिका की भूमिका और उत्तरदायित्व बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किये गए है। प्रत्येक सरकारी कार्यालय में अब एक डिजिटल बायोमेट्रिक अटेंडेंस प्रणाली है। सरकार ने देश में आकांक्षापूर्ण जिलों की पहचान की है और नीति आयोग 39 संकेतकों पर इनकी निगरानी करता है। इस पहल का उद्देश्य है कि इन जिलों को अन्य जिलों के बराबर या बेहतर स्थिति में लाया जाए। यह पहल गांधीजी की समाज के पिछले वर्ग के लोगो के उत्थान के प्रयासों के अनुरूप हैं। (Gandhi Jayanti 2023)
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राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा। इस निदेश के अनुरूप देश में वनों का अनुपात बढ़ाने के प्रयासों के अलावा सामाजिक वानिकी कार्यक्रम पर पर्याप्त बल दिया जा रहा है। गांधी जी ने कहा था कि यदि पश्चिम की नकल करके भारत (अपनी विशाल जनसंख्या के साथ) इंग्लैंड के जीवन स्तर तक पहुंचने की कोशिश करेगा तो पृथ्वी के संसाधन पर्याप्त नहीं होंगे। उन्होंने उस चीज के प्रति भी आगाह किया जिसे बाद में ‘उपभोक्तावादी संस्कृति‘ और ‘अपशिष्ट-केंद्रित समाज‘ के रूप में जाना जाने लगा। उनका मशहूर और अक्सर उद्धृत किया जाने वाला कथन कि, “पृथ्वी के पास सभी लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन कुछ लोगों के लालच को संतुष्ट करने के लिए नहीं,” 1990 के दशक में आश्चर्यजनक रूप से प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने मनुष्य की ‘जरूरत‘ और ‘चाह‘ के बीच अंतर किया। (Gandhi Jayanti 2023)
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गांधी जी ने वर्तमान पीढ़ी द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने से पहले भविष्य की पीढ़ियों को ध्यान में रखने पर भी जोर दिया। 1992 में रियो-डी-जनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में दुनिया के अब तक की सबसे बड़ी संख्या में देशों द्वारा तैयार किए गए ‘‘एजेंडा 21‘‘ में पर्यावरण से संबंधित गांधी के विचारों का प्रतिबिंब पाया है। इस प्रकार मानव पारिस्थितिकी परिप्रेक्ष्य समग्र है। गांधीजी ने मानव जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग नियमों को मान्यता नहीं दी बल्कि सभी क्षेत्रों को एकीकृत तरीके से देखा। पर्यावरण के लेबल के तहत वर्तमान में चर्चा किए गए मुद्दे उनके जीवनकाल के दौरान प्रमुख नहीं थे। गांधी जी ने कहा कि “एक निश्चित स्तर तक शारीरिक सद्भाव और आराम आवश्यक है, लेकिन एक निश्चित स्तर से ऊपर यह मदद के बजाय बाधा बन जाता है। इसलिए, असीमित संख्या में आवश्यकताएं पैदा करने और उन्हें संतुष्ट करने का आदर्श एक भ्रम और एक जाल प्रतीत होता है।” उनके अनुसार, जो व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं को कई गुना बढ़ा देता है, वह सादा जीवन और उच्च विचार का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता। उन्होंने औद्योगीकरण के खतरों के प्रति आगाह किया। (Gandhi Jayanti 2023)
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भारत में पर्यावरण आंदोलनों ने सत्याग्रह को नैतिक युद्ध के रूप में इस्तेमाल किया। वनों की कटाई के विरोध में वन सत्याग्रह का सर्वप्रथम प्रभावी प्रयोग चिपको आंदोलन में हुआ। प्रकृति को बचाने के लिए गांधीवादी तकनीक जैसे- पदयात्राएं निकाली गईं। चंडी प्रसाद भट्ट, बाबा आम्टे, सुंदरलाल बहुगुणा, मेधा पाटकर आदि पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने युद्ध वियोजन, अहिंसा और आत्मबलिदान पर आधारित गांधीवादी तकनीकों का प्रयोग किया गया। गांधी का स्वदेशी विचार भी प्रकृति के खिलाफ आक्रामक हुए बिना, स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के उपयोग का सुझाव देता है। उन्होंने आधुनिक सभ्यता, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की निंदा की। गांधी ने कृषि और कुटीर उद्योगों पर आधारित एक ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था का आह्वान किया। गांधी जी के पास न केवल पर्यावरण के बारे में एक दृष्टिकोण था, उन्होंने न केवल अपने देशवासियों को प्रौद्योगिकी की गैर-आलोचनात्मक स्वीकृति और इसके जीवन स्तर के मामले में पश्चिम के साथ खाने के बारे में गंभीर रूप से जागरूक होने के लिए प्रोत्साहित किया। भारत के लिये गांधी की दृष्टि प्राकृतिक संसाधनों के समझदारी भरे उपयोग पर आधारित है, न कि प्रकृति, जंगलों, नदियों की सुंदरता के विनाश पर। प्रकृति को गांधीवादी नजरिये से देखने पर वैश्विक तापन जैसी समस्याएँ कम हो सकती हैं, क्योंकि इस समस्या की जड़ उपभोक्तावाद ही है। गांधीवादी दर्शन में जरुरत के मुताबिक ही उपभोग की बात की है। (Gandhi Jayanti 2023)
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वर्तमान युग में जब भारत उत्तरोत्तर विकास और समृद्धि की ओर बढ़ रहा है तब हमारे राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए अंत्योदय जैसे गांधीवादी सिद्धांत को देश के सुशासन में प्रधानता देने की आवश्यकता है। महात्मा गांधी के विचारों का अनुकरण करते हुए, हम एक ऐसी आर्थिक प्रणाली बनाने के लिये प्रयासरत हैं, जहाँ न ही कोई दबाव हो और न ही सरकार की अनुपस्थिति जैसी स्थिति हो और जहाँ नए भारत को विकास और रोजगार, समावेशिता, स्वच्छता और पारदर्शिता के स्तंभों का समर्थन प्राप्त होता हो। गांधी जी ने अन्य क्षेत्रों की तरह प्रकृति के संबंध में भी अहिंसा पर जोर दिया। प्रकृति को श्रद्धा की भावना से देखना था। इसे ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली प्राणी मनुष्य को पौधों और जानवरों सहित संवेदनशील प्राणियों पर हिंसा नहीं करनी चाहिए। पारिस्थितिक संतुलन और शांति से उनका तात्पर्य यही था। गांधी का पर्यावरणवाद भारत और दुनिया के लिए उनके समग्र दृष्टिकोण से मेल खाता था, मानव प्रकृति से वह प्राप्त करने की कोशिश करता था जो उसके जीवन के लिए बिल्कुल आवश्यक है। पर्यावरण पर उनके विचार राजनीति, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और विकास से संबंधित उनके विचारों से गहराई से जुड़े हुए हैं। गांधी आधुनिक अर्थों में पर्यावरणविद् नहीं थे। हालाँकि उन्होंने हरित दर्शन की रचना नहीं की या प्रकृति कविताएँ नहीं लिखीं, उन्हें अक्सर ‘‘अनुप्रयुक्त मानव पारिस्थितिकी के प्रेरित‘‘ के रूप में वर्णित किया जाता है। (Gandhi Jayanti 2023)
आलेख- सूर्य प्रकाश अग्रहरि