Thursday, December 12, 2024

Ganesh Ji Ki Sund Disha: दाईं या बाईं.. इनमें से किस दिशा में होनी चाहिए भगवान गणेश जी की सूंड?

Ganesh Ji Ki Sund Disha: भगवान गणेश हिन्दू धर्म में प्रथम पूजनीय देवता माने जाते हैं। किसी भी शुभ कार्य या पूजा की शुरुआत से पहले, लोग भगवान गणेश की पूजा करते हैं। सब जानते हैं कि भगवान श्री गणेश सुख और समृद्धि के देवता हैं और उनकी कृपा से जीवन के सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूरे हो जाते हैं, इसलिए लोग अपने घरों के मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति रखते हैं। गणेश जी की सूंड को लेकर अलग-अलग धर्मों में विभिन्न धारणाएं हैं। हमने अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति हमेशा बायीं और मुड़ी हुई देखी है। कहा जाता है कि दक्षिण दिशा की ओर सूंड वाली गणेश जी की मूर्ति घर में नहीं रखी जाती है। यदि गणेश जी की मूर्ति की सूंड दक्षिण दिशा की ओर मुड़ी हो, तो यह शुभ नहीं माना जाता है और ऐसी मूर्ति टूट जाती है। Ganesh Ji Ki Sund Disha

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आमतौर पर, गणेश जी की मूर्ति में दक्षिण की दिशा में सूंड केवल मंदिरों में ही पाई जाती है। कहा जाता है कि गणेश जी की दक्षिणमुखी मूर्ति की पूजा विधि-विधान का पालन करना चाहिए। यदि उस पूजा में कोई भूल होती है, तो गणेश जी नाराज हो सकते हैं। हालांकि, यदि हम भगवान गणेश की दक्षिण दिशा की ओर सूंड वाली मूर्ति की पूजा करते हैं, तो भगवान गणेश की कृपा हमें बनी रहती है। दक्षिण मुखी सूंड वाली मूर्ति की यदि सही विधि से पूजा की जाए, तो यह मनोबल और मनोकामनाओं को पूरा करने में सहायक हो सकती है। आइए, ज्योतिष चिराग बेजान दारूवाला से जानें कि गणेश जी की सूंड किस दिशा में होनी चाहिए। Ganesh Ji Ki Sund Disha

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Ganesh Ji Ki Sund Disha: ये है बेहद शुभ

जब भी आप अपने घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं, तो यह याद रखें कि गणेश जी की सूंड उनके बाएं हाथ की ओर होनी चाहिए। इसे माना जाता है कि इस प्रकार की मूर्ति से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। आप अपने घर में सीधी सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित कर सकते हैं। इस प्रकार की मूर्ति से घर का वातावरण खुशहाल रहता है और सुख-शांति का अहसास होता है। Ganesh Ji Ki Sund Disha

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किस तरफ होनी चाहिए Ganesh Ji Ki Sund Disha

कुछ मूर्तियों में गणेश जी की सूंड बाईं ओर और कुछ में दाईं ओर होती है। गणेश जी की अधिकांश मूर्तियां सीधी अथवा उत्तर दिशा की ओर सूंड वाली होती हैं। इसका मतलब है कि जब भी गणेश जी की मूर्ति को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बनाया जाता है, तो वह टूट जाती है। माना जाता है कि संयोग से यदि आपको दक्षिणावर्ती मूर्ति मिले और उसकी विधिवत पूजा की जाए, तो आपको मनोवांछित फल मिलता है। गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाओं से दिखाई देती है, और जब सूंड दाईं ओर मुड़ती है, तो माना जाता है कि यह पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित है। इस प्रकार की मूर्ति की पूजा से विघ्न विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्रता और शक्ति की प्राप्ति होती है। Ganesh Ji Ki Sund Disha

बाईं ओर मुड़ी हुई सूंड वाली मूर्ति इड़ा नाड़ी और चंद्रमा से प्रभावित होती है और इस प्रकार की मूर्ति की पूजा से शिक्षा, धन, व्यापार, प्रगति, संतान सुख, विवाह, रचनात्मक कार्य और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। सीधी सूंड वाली मूर्ति सुषुम्रा स्वर वाली मानी जाती है और इसकी पूजा रिद्धि-सिद्धि, कुंडलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। संत समाज ऐसी मूर्ति की ही पूजा करता है, दाहिनी ओर सूंड वाली मूर्ति होती है। सिद्धि विनायक मंदिर इसी कारण, इस मंदिर की आस्था और आय आज चरम पर है। जिस मूर्ति में सूंड दाहिनी ओर होती है, उसे दक्षिणा मूर्ति कहा जाता है। दाहिना भाग जो यमलोक की ओर जाता है, वह सूर्य की नाड़ी का दाहिना भाग है। Ganesh Ji Ki Sund Disha

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Ganesh Ji Ki Sund Disha: बाईं सूंड वाली मूर्ति की विशेषता

बाईं सूंड वाली गणेश जी की मूर्ति विभिन्न आकृतियों में हो सकती है, लेकिन यह एक अद्वितीय पौराणिक अर्थ से भरी होती है। इस मूर्ति की विशेषता में एक बाईं सूंड का विशेष स्थान है, जो हिन्दू धर्म में पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण रूप से उल्लेख किया जाता है। बाईं सूंड को संगीत का प्रतीक माना जाता है, और गणेश जी को संगीत का प्रेमी माना जाता है। इस तरह, बाईं सूंड वाली गणेश जी की मूर्ति संगीत और कला की ऊँचाइयों को प्रतिष्ठित करती है। इसके साथ ही, बाईं सूंड को जीवन के उत्कृष्टता का प्रतीक माना जाता है, जो साधना, समर्पण, और सहानुभूति के माध्यम से प्राप्त होती है। इस मूर्ति के माध्यम से, हम यह सीखते हैं कि संगीत का आनंद और ऊँचाइयों की प्राप्ति के लिए समर्पण और साधना महत्वपूर्ण हैं, जो जीवन को सुखी और समृद्धि से भर देते हैं। Ganesh Ji Ki Sund Disha

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दाहिनी ओर मुड़ी हुई सूंड वाली गणेश जी की मूर्ति की विशेषता 

हमारा दाहिना स्वर हमारी पिंगला नाड़ी का प्रतिनिधित्व करता है। जिस समय हमारी नाड़ी चलती है, हमें पता चल जाता है कि उस समय हमारा कौन सा स्वर चल रहा है। यदि हम दाहिनी नाक से सांस ले रहे हैं, तो इसका मतलब है कि हमारा दाहिना स्वर काम कर रहा है और हमारी पिंगला नाड़ी सक्रिय है। दायां स्वर जागृत होने का अर्थ है कि यह स्वर सूर्य की ऊर्जा से प्रभावित होता है और आज हमारा दिन ऊर्जावान रहने वाला है। जिस गणेश प्रतिमा की सूंड दाहिनी ओर मुड़ी हुई हो। ऐसी मूर्ति के स्वरूप की पूजा करने से बड़े से बड़े संकट भी दूर हो जाते हैं। Ganesh Ji Ki Sund Disha

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