Thursday, December 12, 2024

गजनी ने बौद्धमठ तोड़कर खड़ी की थी मेरठ की शाही मस्जिद, प्रसिद्ध इतिहासकार का दावा…

मेरठ की शाही मस्जिद: आपने अयोध्या में राम मन्दिर की कहानी जरूर सुनी होगी। मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि और काशी में ज्ञानवापी का मामला भी खूब चर्चाओं में रहा है धीरे धीरे तथ्यों के आधार पर सच सामने आ रहा है इसी बीच मेरठ से जुड़े एक स्थान को लेकर भी कुछ अनुभवी इतिहासकार ऐसे दावे कर रहे है जिनसे पता चलता है कि जिस तरह अयोध्या, मथुरा, काशी में प्राचीन काल में मुस्लिम शासकों द्वारा छेड़छाड़ हुई थी। वैसा ही मेरठ में भी हुआ था आइए मेरठ की शाही मस्जिद से जुड़ी एक कहानी आपको बताते हैं जहां बोद्ध मठ को तोड़कर मस्जिद बनाई गई…

मेरठ की शाही मस्जिद

बौद्धमठ को ढहाकर बनवाई थी मेरठ की शाही मस्जिद

प्रख्यात इतिहासकार डॉ केडी शर्मा ने मेरठ की शाही मस्जिद को लेकर बड़ा दावा किया है। केडी शर्मा के मुताबिक मेरठ में बनी शाही मस्जिद मुहम्मद गजनी ने बौद्धमठ को ढहाकर उसके स्थान पर बनवाई थी। उनके पास इस दावे के ऐतिहासिक और प्रत्यक्ष साक्ष्य मौजूद है। इतिहासकार ने बताया कि अब से लगभग एक हजार चार साल पहले इस्लामिक कैलैन्डर के मुताबिक 410 हिजरी में भारत आये मुस्लिम आक्रांता मुहम्मद गजनी ने पुराने मेरठ के सबसे ऊंचे टीले पर बने बौद्ध मठ को गिरा दिया था। इस बौद्ध मठ को तहस नहस करके मुस्लिम आक्रांता ने वहां एक मजिस्द बनवाई थी जिसको आज लोग शाही मस्जिद के नाम से जानते हैं।

भूकंप के बाद सामने आई सच्चाई

प्रसिद्ध इतिहासकार और चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख रहे डॉ के0 डी0 शर्मा मेरठ की शाही मस्जिद के बारे में बताते हैं कि 1875 में आये भूकंप के बाद इस मस्जिद का कुछ हिस्सा टूट गया और कई पिलर निकलकर बाहर आ गये थे जिन पर इंडो-बुद्धिस्ट और मौर्या पाषाण कला की झलक थी। डॉ के0 डी0 को ये पिलर अपने दोस्त असलम सैफी के पास मिले और उन्हें वहां से वे अपने घर ले गए। बाद में इतिहास के तथ्यों के आधार पर जब उनका मिलान किया गया तो यह साफ हो गया कि मुस्लिम आक्रांताओं के कहर के बाद बौद्धमठ को जमीदोज करके ही मेरठ की शाही मस्जिद बनाई गयी है।

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शहर के सबसे ऊंचे टीले पर बना था बौद्ध मठ

बताया जाता कि कि यह बौद्ध मठ मेरठ शहर के सबसे उचाई वाले टीले पर बना हुआ था। मुहम्मद गजनी पहले मुस्लिम आक्रमणकारी थे जिन्होने मेरठ में स्थित बौद्धमठ की शक्ल बदली थी और उस जगह को जामी मस्जिद या शाही मस्जिद का नाम दिया था। प्राचीन काल में बौद्धमठ और मंदिर हमेशा ऐसे ही स्थानों पर बनाए जाते थे। इतिहासकार डॉ केडी शर्मा कहते है कि अंग्रेजों के शासन से पहले देश के 90 प्रतिशत मंदिर, मठों पर मुस्लिम आक्रांताओं ने उन्हें मिटाने का अभियान चलाया था और उनके स्थान पर ही अपने धार्मिक स्थल खड़े किए थे। बाबरी मस्जिद इसका बड़ा उदाहरण है। काशी और मथुरा में भी ऐसा ही हुआ था।

इतिहासकार के पास आज भी मौजूद हैं दो पिलर

डॉ शर्मा का दावा है कि मस्जिद की दीवारों से निकले पिलर आज भी उनके पास मौजूद है। उनके आवास के गार्डन एरिया में ये दोनों पिलर आज भी देखे जा सकते है। “इन पिलर्स पर कमल और सूर्य के प्रतीक स्पष्ट रूप दिखते हैं। इनमें हाथियों की कलाकृतियां भी बनी हैं। उस जमाने की पाषाणकला को इंडो-बुद्धिस्ट कला के नाम से जाना जाता है। यह मौर्या के समय की है और प्रतिहार काल के बेहद नजदीक है”.

इन ऐतिहासिक तथ्यों के सहारे डॉ शर्मा के दावे को मजबूती मिलती है

मेरठ की शाही मस्जिद का जिक्र 119 साल पहले ब्रिटिश हुकुमत में प्रकाशित हुए गेजेटियर में भी मिलता है। गेजेटियर के वोल्यूम-4 पेज संख्या-273 पर लिखा है कि – “जामी मस्जिद का निर्माण प्राचीनकाल में रहे बौद्ध मंदिर पर किया जाना प्रतीत होता है। इसकी खोज तब हुई जब 1875 में इस बौद्धमंदिर के अवशेष यहां से बरामद हुए थे। यह कहा जाता है कि 410 हिजरी में मुहम्मद गजनी के वजीर हसन मेंहदी ने इस मस्जिद का निर्माण कराया था और मुगलकाल में हुमायूं ने इसका जीर्णोद्वार कराया.”

राजर्षि टंडन जन्मशती ग्रंथ में प्रसिद्ध इतिहासकार लक्ष्मीनारायण वशिष्ठ के एक ‘लेख इतिहास के वातायन से’ के पेज संख्या 378, 379 में भी मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मेरठ में अलग-अलग धर्मों के स्थलों को तोड़े जाने की कहानी विस्तार से लिखी गयी है।

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