Health News: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेशिया) के लिए नई गाइडलाइन जारी की है, जो गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए लाइफ सपोर्ट हटाने के मामलों में लागू होगी। ये गाइडलाइन उन मरीजों के लिए है जो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं और केवल लाइफ सपोर्ट सिस्टम की मदद से जीवित हैं। इस नई गाइडलाइन का उद्देश्य डॉक्टरों को ऐसी परिस्थितियों में सही और संवेदनशील निर्णय लेने में मदद करना है। आइए इन गाइडलाइन्स को विस्तार से समझते हैं। Health News
Health News: इन चार शर्तों के आधार पर होगा फैसला
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की नई गाइडलाइन में चार महत्वपूर्ण शर्तों का उल्लेख किया गया है, जिनके आधार पर डॉक्टर यह तय कर सकते हैं कि गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति का लाइफ सपोर्ट हटाया जाए या नहीं। ये शर्तें निम्नलिखित हैं:
- ब्रेन डेड घोषित किया जाना: सबसे पहली शर्त यह है कि मरीज को ब्रेन डेड घोषित किया जा चुका हो। इसका मतलब है कि मस्तिष्क ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया हो, और मरीज के बचने की कोई संभावना न हो।
- बीमारी एडवांस स्टेज में होना: दूसरी शर्त यह है कि मरीज की बीमारी इतनी एडवांस स्टेज में पहुंच गई हो कि उपचार का कोई लाभ न हो। यानी, मरीज का स्वास्थ्य इस स्थिति में हो कि किसी भी चिकित्सा पद्धति से उसे बचाया नहीं जा सकता।
- लाइफ सपोर्ट जारी रखने से इनकार: तीसरी शर्त यह है कि मरीज या उनके परिजन लाइफ सपोर्ट जारी रखने से इनकार कर दें। इसका मतलब यह है कि परिवार की सहमति से जीवन रक्षक उपचार को बंद किया जा सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन: चौथी और अंतिम शर्त यह है कि लाइफ सपोर्ट हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत की जाए। इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रक्रिया कानूनी रूप से सही हो और नैतिकता के दायरे में हो। ये शर्तें डॉक्टरों को इस संवेदनशील मुद्दे पर निर्णय लेने में मार्गदर्शन करती हैं और मरीजों व उनके परिजनों के अधिकारों का सम्मान करते हुए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की प्रक्रिया को सही ढंग से संपन्न करने में मदद करती हैं। Health News
ड्राफ्ट में टर्मिनल बीमारी के बारे में भी है
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई निष्क्रिय इच्छामृत्यु की नई गाइडलाइन में टर्मिनल बीमारी का भी उल्लेख किया गया है। टर्मिनल बीमारी एक ऐसी लाइलाज स्थिति होती है, जिसमें मरीज की निकट भविष्य में मृत्यु की संभावना अधिक होती है। इसका मतलब यह है कि मरीज की स्थिति इतनी गंभीर होती है कि इलाज का कोई असर नहीं हो सकता और उसका ठीक होना असंभव माना जाता है। टर्मिनल बीमारियों में वे गंभीर मस्तिष्क चोटें भी शामिल हैं, जिनमें 72 घंटे या उससे अधिक समय तक कोई सुधार नहीं दिखाई देता। ऐसे मामलों में मरीज का जीवन केवल लाइफ सपोर्ट सिस्टम के जरिए ही संभव हो पाता है। Health News
नई गाइडलाइन के अनुसार, ICU में कई ऐसे मरीज होते हैं जो टर्मिनली बीमार होते हैं, और जिनके लिए लाइफ सस्टेनिंग ट्रीटमेंट (जीवन रक्षक उपचार) से कोई फायदा होने की संभावना नहीं होती। ऐसे में, इन मरीजों का जीवन समर्थन हटाने का निर्णय, गाइडलाइन के अनुसार, उन परिस्थितियों में लिया जा सकता है जब इलाज का कोई लाभ नहीं दिखाई देता और मरीज का ठीक होना लगभग असंभव होता है। इस गाइडलाइन का उद्देश्य ऐसी स्थितियों में डॉक्टरों को सही और नैतिक निर्णय लेने में सहायता प्रदान करना है, ताकि मरीजों के जीवन के अंतिम चरण में सही कदम उठाया जा सके। Health News
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने क्या कहा
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आर.वी. अशोकन ने स्वास्थ्य मंत्रालय की नई निष्क्रिय इच्छामृत्यु गाइडलाइन पर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि ये गाइडलाइन डॉक्टरों को कानूनी जांच के दायरे में ला सकती हैं, जिससे डॉक्टरों पर तनाव बढ़ेगा। Health News
डॉ. अशोकन का मानना है कि डॉक्टर हमेशा क्लिनिकल फैसले नेक नीयत से लेते हैं और किसी भी निर्णय से पहले मरीज के परिजनों को पूरी स्थिति के बारे में विस्तार से समझाते हैं। डॉक्टर हर पहलू की बारीकी से जांच करने के बाद ही कोई निर्णय लेते हैं। उन्होंने कहा कि इन मामलों में मरीज के परिवार की भावनाओं और स्थिति का सम्मान किया जाता है, और किसी भी निर्णय को हल्के में नहीं लिया जाता। इस गाइडलाइन को लेकर डॉक्टरों की चिंताएं कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों को लेकर हैं, क्योंकि अब डॉक्टरों पर अतिरिक्त कानूनी दबाव भी होगा, जबकि वे पहले से ही बहुत संवेदनशील और कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे होते हैं। Health News