Friday, November 22, 2024

India-Pak Partition: आजादी के दो दिन बाद तक भारत के कब्जे में था लाहौर, फिर पाकिस्तान में कैसे गया…

India-Pak Partition: भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन के समय इस बात की चर्चा बहुत अधिक जोरों पर थी कि हिन्दू आबादी वाला लाहौर पाकिस्तान की तरफ होगा या भारत में रहेगा। जानिए India-Pak Partition वाली रेडक्लिफ लाइन की पूरी गाथा…

भारत को भले ही 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली हो, लेकिन India-Pak Partition की तैयारी इससे बहुत पहले ही शुरू हो गई थी। जब 3 अगस्त 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन आजादी की योजना पेश कर रहे थे तो साफतौर पर कहा था कि भारत को आजादी दो हिस्सों में बंटकर मिलेगी। लॉर्ड माउंटबेटन की इस योजना को जवाहर लाल नेहरूऔर मोहम्मद अली जिन्ना ने भी स्वीकार कर लिया था, लेकिन इस बंटवारे को अंजाम तक पहुंचाना बहुत आसान काम नहीं था।

India-Pak Partition को लेकर यह तय करना कठिन था कि हिन्दुस्तान का कौन सा हिस्सा भारत में रखा जाए कौन सा पाकिस्तान को दिया जाए, यह सब भारत की आबादी को देखते हुए तय करना मुश्किल था। लंबे सोच-विचार के बाद तय हुआ कि बंटवारा धर्म के आधार पर ही होगा। जबकि यह भी आसान नहीं था क्योंकि कई इलाके ऐसे थे जहां हिन्दू-मुस्लिम की जनसंख्या लगभगर बराबर थी। अंग्रेजी सरकार ने इसकी जिम्मेदारी सिरिल रेडक्लिफ को सौंपी दी थी। दिलचस्प बात यह थी कि सिरिल रेडक्लिफ पहले कभी भारत नहीं आए थे और न ही वो भारत की आबादी से वाकिफ थे।

कौन थे सिरिल रेडक्लिफ ?

अंग्रेजी सरकार का मानना था कि रेडक्लिफ भारत कभी नहीं आए और वो ही भारता-पाकिस्तान के निष्पक्ष तरीके से भारत-पाक विभाजन के लिए सही इंसान साबित होंगे। इस काम के लिए उन्हें लॉर्ड माउंटबेटन ने चुना था पेशे से रेडक्लिफ एक वकील थे। वो ब्रिटेन देश के वेल्स के निवासी वाले थे और उनके पिता वहां की सेना के कप्तान थे।

ब्रिटेन के ही हेली बेरी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी और एक वकील बनने के लिए ऑक्सफोर्ड से Law की पढ़ाई की और एक वकील के तौर पर खुद को स्थापति किया। ब्रिटेन में कई बड़े केस लड़ने की बजह से वो पॉपुलर हो गए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रेडक्लिफ Information मंत्रालय से जुड़ गए और 1941 में उन्हें डायरेक्टर जनरल के पद पर बिठाया गया।

India-Pak Partition में कैसे खींची गई बंटवारे की रेखा ?

इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट पास होने के बाद उन्हें India-Pak Partition की लाइन खीचने की जिम्मेदारी मिली। साथ ही दो सीमा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया पंजाब और बंगाल का, उनकी मदद के लिए दो हिन्दू और दो मुस्लिम वकील भी दे दिए गए। 8 जुलाई, 1947 को रेडक्लिफ भारत पहुंचे और उन्हें 5 हफ्तों के यानि 35 दिन में ही बंटवारे की रेखा खींचने की लक्ष्य दिया गया ।

जनसंख्या के लिहाज से बंगाल और पंजाब को बांटना आसान काम नहीं था। दोनों ही राज्यों में हिन्दू-मुस्लिम आबादी लगभग बराबर थी फिर भी तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए 12 अगस्त 1947 को रेडक्लिफ ने अपने काम को पूरा कर दिया था और 17 अगस्त 1947 को आधिकारिक तौर पर इस बटवारे की रेखा को सार्वजनिक किया गया। इसे रेखा को ही रेडक्लिफ रेखा कहा गया।

India-Pak Partition में लाहौर पाकिस्तान के हिस्से में क्यों गया ?

हिन्दू-मुस्लिम की आबादी से भी ज्यादा पूरे देश में इस बात की चर्चा थी कि क्या रेडक्लिफ अधिक हिन्दू आबादी वाले लाहौर पाकिस्तान को देंगे या नहीं। इस बटवारे के फैसले पर एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि बंटवारे के दौरान लाहौर को भारत के हिस्से में ही आ चुका था ,लेकिन तैयारी को फाइनल रूप देते समय इस बात पर विचार हुआ कि पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर नहीं था, इसलिए लाहौर को पाकिस्तान में रखने का निर्णय लिया गया। इस तरह लाहौर आजादी के बाद तक भी भारत का हिस्सा था लेकिन आधिकारिक घोषणा में इसे पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया।

India-Pak Partition के बाद सीमा तय होने के बाद पलायन शुरू हो गया था, करोड़ाें लोग भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत में गए। इस बटवारे के बाद रेडक्लिफ ब्रिटेन चले गए और फिर कभी भारत नहीं नहीं आए ।

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