Thursday, December 12, 2024

India that is Bharat: ‘भारत’ नाम पर हुए विवाद को लेकर पढ़े ‘सूर्य प्रकाश अग्रहरि’ का यह लेख- इंडिया दैट इज भारत

India that is Bharat: हजारों वर्षों की गुलामी के दौरान हमारे देश ने अपनी संस्कृति, अपनी महत्ता, अपना इतिहास, अपनी प्रतिष्ठा, अपना मान-सम्मान, अपनी मानवता, अपना स्वाभिमान, यहाँ तक की अपने नाम को खो दिया था। एक तरीके से हमारे देश ने अपनी आत्मा को खो दिया था। वह देश जिसे सोने की चिड़िया कहा जाता था, अब वह अपनी पहचान को खो चुका था। स्वतंत्र होने के बाद जब संविधान सभा में देश के नामकरण के उत्सव का दिन आया तो नए जन्मे देश के नाम को लेकर काफी बहस हुई। बहस का कारण अनुच्छेद 1 के लिए ‘इंडिया दैट इज भारत’ नाम का प्रस्ताव था। इसको लेकर संविधान सभा के विभिन्न सदस्यों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई। संविधान सभा के सदस्य हरि विष्णु कामत ने प्रमुखता से अपना विरोध दर्ज कराया था।

अनुच्छेद 1 में देश का नाम ‘इंडिया अर्थात भारत (India that is Bharat)

उनका मत था कि, “मैं समझता हूं कि इंडिया अर्थात भारत पद का अर्थ ‘इंडिया जिसको भारत कहा जाता है’ है। मैं समझता हूँ कि संविधान में यह कुछ भद्दा सा है। ‘भारत अथवा अंग्रेजी भाषा में इंडिया’ इत्यादि, अधिक सुंदर पद है।” इसी तरह संविधान सभा के एक और सदस्य सेठ गोविंद दास ने नामकरण के विषय पर अपने भाषण में कहा कि, “इंडिया दैट इज भारत’ बहुत सुंदर तरीका नाम रखने का नहीं है। हमें नाम रखना चाहिए था ‘भारत, जिसे विदेश में इंडिया भी कहा जाता है’, यह ठीक नाम होता।” इन सदस्यों के अलावा जिन्होंने भारत नाम का समर्थन किया उसमें से कल्लूर सुब्बा राव, राम सहाय, कमलापति त्रिपाठी, बीएम गुप्ता आदि सदस्य प्रमुखता से थे। संविधान सभा के ही एक और सदस्य हरगोविंद पंत ने ‘भारतवर्ष’ नाम सुझाया था। दक्षिण और गैर हिन्दी भाषी सदस्यों ने भारत नाम पर हुई असहमति के बाद हुई वोटिंग पर प्रस्ताव 38 के मुकाबले 51 मतों से गिर गया और अनुच्छेद 1 में देश का नाम ‘इंडिया अर्थात भारत, राज्यों का संघ होगा’ नाम पारित हो गया।

नाम को लेकर जन्मे विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को गौर करें तो हम देखते हैं कि प्राचीन काल से ही देश का नाम भारत और यूनानियों के आने के बाद कहीं-कहीं इंडिया मिलता है। मध्यकाल आते-आते देश का नाम इंडिया प्रमुखता से इस्तेमाल होने लगता है। यदि हम संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों की बात करें तो इंडिया नाम का कोई उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। ऋग्वेद में ईडयम (अग्नि), इडू और ईडेंय: (अग्नि का विशेषण) और यजुर्वेद में इडा (वाणी का वाचक) शब्द आया है परंतु इनका इंडिया से कोई संबंध नहीं है। देश के नाम की उत्पत्ति के विषय में कई प्राचीन स्रोत उपलब्ध हैं। ऋग्वैदिक काल में पुरुष्णी नदी (रावी नदी) के किनारे हुए प्रसिद्ध दशराज्ञ युद्ध का उल्लेख आवश्यक है।

यह युद्ध इस काल के सबसे प्रतापी राजवंश भरत और अन्य दस कबीलों के मध्य हुआ था। इसमें भरत वंश का राजा सुदास विजय हुआ तथा पराजित होने वाले कबीलों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कबीला ‘पुरु’ था। आगे चलकर भरत और पुरु मिलकर एक नए वंश का निर्माण करते हैं जिसे ‘कुरु’ कहा गया। भरत वंश ने इस भूभाग के भौगोलिक और राजनीतिक एकीकरण की शुरुआत की इसलिए इस क्षेत्र का नाम ‘भारत’ कहा जाने लगा। इसके अलावा कई पुराणों में भी भारत नाम का उल्लेख है जैसे विष्णुपुराण में लिखा है- ‘गायन्ति: देवा किल गीत कानि, धन्यास्तु ने भारत भूमि भागे।’ ब्राह्मणपुराण में उल्लेखित है- ‘भरणाच्य प्रजानावै मनुर्भरत उच्यते, निरुक्त वचनाचैव वर्ष तद्-भारत स्मृतं।’

रामायण काल की बात करें तो विदर्भ के राजा भोज ने अपनी बहन इंदु या इंदुमती का विवाह अयोध्या के राजा अज से किया। रानी इंदु और राजा अज से उत्पन्न संतान का नाम दशरथ था। राजा दशरथ और रानी कौशल्या की पहली संतान का नाम राम तथा राजा दशरथ और रानी कैकई के पुत्र का नाम भरत था। रानी कैकेयी अपने पुत्र भरत को राजसिंहासन पर बैठना चाहती थी परंतु नियमतः सिंहासन राजा दशरथ के पहले पुत्र राम को मिला। राम ने जिस भूमि पर राम राज्य की स्थापना की उस भूमि को उनकी दादी इंदुमती के नाम पर ‘इंडिया’ और उनके भाई भरत के नाम पर ‘भारत’ कहा गया। महाभारत का भीष्म पर्व भी कहता है ‘अथते कीति पुष्यामि वर्ष भारत भारत।’

सबसे प्रसिद्ध और शब्द-प्रसिद्ध कवि कालिदास ने इस शब्द का प्रयोग अपने दो महान पात्रों-राजा दुष्यंत और उनकी रानी शकुंतला की कहानी को दर्शाते हुए अपनी अमर कृति में किया है। उनसे जन्मे पुत्र का नाम ‘भरत’ रखा गया और उनके साम्राज्य को “भरत” के नाम से जाना गया। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भरत की वीरता के अनेक मनमोहक वर्णन हैं। अगर हम जैन धर्म ग्रंथो की बात करें तो उनका मानना है कि पहले तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती राजा भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। इसी तरह 2300 साल पहले जिस भूमि पर मेगस्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था उसे भूमि का नाम इंडिया था जो इंडस नदी के से घिरा हुआ था।

इंडस नदी वही सिंधु है जिसका नाम यूनानियों ने रखा था। मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक का नाम ‘इंडिका’ रखा, जिसमें उसने देश की सांस्कृतिक, भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक बातों का उल्लेख किया है। यूनानियों के संबंध में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका ने भी लिखा है कि, इंडिया शब्द किसी प्राचीन ग्रंथ में न होकर उस समय से प्रयोग में आने लगा जब से यूनानी भारत में आए। यूनानियों ने सिंध का नाम इंडस रखा यहीं से ‘इंडिया’ शब्द आया। चीनी यात्रियों ने अपने यात्रा वृत्तांत में इस देश का नाम ‘भारत’ लिखा।

18 सितंबर 1949 को जब देश की संविधान सभा ने ‘इंडिया अर्थात भारत’ का उल्लेख संविधान में कर दिया तो वर्तमान में भारत नाम पर इतनी आपत्ति क्यों दर्ज कराई जा रही है ? भारत नाम को संघीय ढांचे पर हमला क्यों कहा जा रहा है ? भारत का उल्लेख न केवल संविधान में है बल्कि आम बोलचाल के साथ सरकारी कामकाज में भी इस शब्द का खूब प्रयोग होता है। भारत के कई पड़ोसी देश भी इंडिया के स्थान पर भारत कहना पसंद करते हैं। हमारे देश के कई राष्ट्रीय संस्थाओं, संवैधानिक पदों के हिंदी नाम के आगे भारतीय या भारत लगा है लेकिन उनका अंग्रेजी अनुवाद इंडिया नाम से है, फिर भी भारत नाम के प्रचलन पर उंगली क्यों उठायी जा रही है ? भारतीय संविधान की प्रस्तावना भी ‘हम भारत के लोग’ से शुरू होती है और संविधान में भारत शब्द 475 बार तथा भारतीय शब्द 57 बार आया है। भारतीय संविधान इंडिया और भारत को समांतर मानता है। भारत के राष्ट्रगान में भारत शब्द है।

अभी हाल ही में एक दल तेलंगाना राष्ट्र समिति ने अपना नाम भारत राष्ट्र समिति कर लिया तब इस नाम पर आपत्ति क्यों नहीं दर्ज कराई गई ? देश का एक वर्ग यह विचार प्रकट कर रहा है कि जब से विपक्षी दलों ने आईएनडीआईए यानी इंडिया नाम का गठबंधन बनाया है तब से देश के सत्ताधारी दल घबरा गए हैं और और वह इसके विरोध में भारत शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन यह तर्क उचित नहीं है क्योंकि अपने देश का मूल नाम भारत है और यह सदियों से प्रचलित है इंडिया नाम तो अंग्रेजों ने दिया है। भारत शब्द इस देश के लिए इस्तेमाल होने वाला सबसे प्राचीन और देशज शब्द है। महान समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया आजीवन भारत नाम के लिए आवाज उठाते रहे। भारत ने जो युद्ध महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़े वह भी ‘भारत माता की जय’ की जयघोष के साथ लड़ा तथा क्रांति भी ‘भारत छोड़ो’ के नाम से छेड़ी गई थी। भारत नाम की इतनी ऐतिहासिकता के बावजूद भी इसका राजनीतिकरण किसी भी वर्ग को लाभदायक नहीं हो सकता है।

इस देश के कई प्राचीन नाम थे- आर्यावर्त, जंबूद्वीप, भारतवर्ष, भारतखंड आदि आदि। मध्यकाल में हिंद, हिंदुस्तान, इंडिया आदि प्रचलित हुए। इंडिया और भारत इन्हीं नाम के पर्याय हैं। वस्तुत: इंडिया और भारत दोनों शब्द इस्तेमाल होते हैं। इंडिया शब्द के विरोध के पीछे का महत्त्वपूर्ण कारण है कि यह अंग्रेजों द्वारा दिया गया नाम है और इंडिया को अभिजन माना जाता है लेकिन भारतीय संविधान और देश की सुप्रीम कोर्ट ने दोनों नाम को इस्तेमाल करने की इजाजत दी है। आज भारत जब वैश्विक प्रगति कर रहा है, आर्थिक रूप से सक्षम हो रहा है, वैश्विक जीडीपी के लगभग 85 प्रतिशत वाले समूह जी20 का प्रतिनिधित्व कर रहा है, दुनिया की निगाहें भारत की तरफ हैं तो ऐसे समय पर इस तरह की निरर्थक विवाद देश के लिए उचित नहीं है। देश की पहचान इंडिया और भारत दोनों नामों से ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की है।

सूर्य प्रकाश अग्रहरि (File Photo)

-सूर्य प्रकाश अग्रहरि

(लेखक छात्र हैं)

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