Last Day in Parliament: 144 खंभों पर उभरी आकाश को छू लेने वाली गोल एक इमारत, जिसने हिंदुस्तान का इतिहास रच दिया। 96 वर्ष पूर्व, इसे बनाया था ब्रिटिशों ने, जिन्होंने अनगिनत सालों तक शासन किया, परंतु यहां भारत का, भारत से, भारत के लिए।

यहाँ भगत सिंह ने गूंजाई थी गोलियों की गर्मियाँ, यहाँ आधी रात को नेहरू की ‘दृढ़ निश्चय’ गूंजती थी। यहां संविधान की हर धारा के बारे में जीवंत चर्चाएं हुई थीं।
Last Day in Parliament
यहां शास्त्री ने लोगों से एक दिन का भोजन छोड़ने की बात की। यहां इंदिरा ने पाकिस्तानी सेना के दाबों की खबर सुनाई और यहां अटल ने कहा – मैं इस प्रकार की शक्ति को छूने की भी बजाय छूने का दर्जा देना पसंद नहीं करूंगा।

यहीं भगत सिंह ने बम फेंका था
यह वही भवन है जहां क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंककर ब्रिटिश सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने का प्रयास किया था, जहां संविधान को उसका स्वरूप मिला, और जहां ब्रिटिश सरकार ने सत्ता सौंपी। यह वही स्थान है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद के रूप में पहली बार कदम रखने से पहले माथा टेका था। इन घटनाओं को, इन बातों को, भूला नहीं जा सकता है।

संविधान सभा की बैठकें यही हुईं थी
इसी भवन में संविधान सभा की बैठकें हुईं थी। पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने 14-15 अगस्त, 1947 की आधी रात को देश की आजादी के अवसर पर अपना भाषण ‘थ्राइस्ट विद डेस्टिनी’ (नियति के साथ साक्षात्कार) दिया था।

लुटियंस ने इस डिज़ाइन को बनाया था
ब्रिटिश काल के दौरान, इस इमारत की डिज़ाइन और निर्माण की ज़िम्मेदारी एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को सौंपी गई थी। इसके परिपासी क्षेत्र को लुटियंस ज़ोन कहा जाता है, जिसका नाम उनके नाम पर रखा गया है।

वर्तमान संसद भवन की नींव 12 फरवरी 1921 को रखी गई थी, और इसके निर्माण कार्य के दौरान छह साल में तबादला हुआ, जिसके लिए उस समय 83 लाख रुपये का खर्च आया था। इस भवन का उद्घाटन भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया था।
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