Shri Krishna: इस साल 2023 में 6 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है यह पर्व भगवान Shri Krishna जी के जन्मोत्सव के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातों से अवगत कराने का प्रयास करेंगे । श्रीकृष्ण का नाम आते ही सामान्यत: उनकी माखनचोरी और रासलीला का दृश्य ही सामने आता है। इसका कारण यह है कि एक तो भक्तियोग के अनुयायी ऋषियों, संतों, भक्तों ने इन लीलाओं का बड़े विस्तार से पुराणों में रसमय वर्णन किया है।
HIGHLIGHTS

Shri Krishna युद्धकला व युद्धनीति में भी पूर्ण पारंगत थे। उन्होंनेअपने जीवन काल में बहुत से युद्ध लड़े और स्वयं को पराक्रमी व अजेय योद्धा के रूप में सिद्ध किया।
श्रीकृष्ण(Shri Krishna) के जीवनकाल के कुछ युद्ध…

मल्ल योद्धा श्रीकृष्ण:श्रीकृष्ण, बलराम को कंस जब एक कूटनीतिक योजना से मथुरा बुला लेता है। वहाँ एक महोत्सव का आयोजन किया गया जिसमें दोनों भाई सम्मिलित हुए। उस समय Shri Krishna की आयु मात्र ११ वर्ष थी। श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम शारीरिक बल व तकनीक प्रदर्शन कुवलयपीड़ नामक मदमस्त हाथी को पछाड़कर प्राणान्त करके किया। उसके बाद जब वे रंगशाला पहुँचते हैं तो पूर्व योजना के अनुसार कंस के बलशाली विशाल देह वाले मल्ल चाणूर और मूष्टिक कृष्ण-बलराम को कुश्ती लड़ने को ललकारते हैं।
श्रीकृष्ण चुनौती स्वीकार करते हैं। कुश्ती प्रारम्भ होती है। दाँव-पेच लगाए जाते हैं। श्रीकृष्ण की देह कोमल से कठोर हो जाती है और जब चाणूर थककर चूर हो जाता है उसे पटक कर उसका अंत कर देते हैं। बलराम मूष्टिक को मार देते हैं। उसके बाद और तीन पहलवान कूट, शल और तोशल आते हैं। इन तीनों का भी मल्ल युद्ध में काम तमाम किया जाता है। ११ वर्षीय श्रीकृष्ण का बल व मल्लकला का अद्भुत प्रदर्शन।
जरासंध से युद्ध: जब कंस का वध हो जाता है तब उसकी दो रानियाँ अस्ति और प्राप्ति अपने पिता मगध नरेश के पास जाकर दुखद समाचार देती है। जरासंध बदला लेने के लिये मथुरा पर आक्रमण करता है उसकी विशाल सेना के साथ दुर्योधन तथा विन्धय और बंग नरेश की सेना भी होती है। श्रीकृष्ण अपना धनुष शारंग लेकर सेना के साथ मैदान में आते हैं। धनुष की टंकार व बाणवर्षा कर शत्रुसेना का संहार करते हैं। जरासंध को एक योजना के तहत नहीं मारते हैं।
कालयवन (म्लेच्छ सेनापति) से युद्ध: जरासंध ने मथुरा पर सत्रह बार आक्रमण किया। हर बार वह हार जाता था। लेकिन अठाहरवीं बार उसने कालयवन नामक म्लेच्छ राजा की विशाल सेना के साथ आक्रमण किया। श्रीकृष्ण ने कालयवन को चतुराई से अपने पीछे दौड़ाया। वे एक गुफा में छिप गये जहाँ ऋषि मुचकुन्द सोये हुए थे। उन पर अपना पीताम्बर उड़ा दिया। कालयवन ने पीताम्बर पर लात से प्रहार किया। ऋषि मुचकुन्द की दृष्टि पड़ते ही वह भस्म हो गया। श्रीकृष्ण वापस मथुरा आये और म्लेच्छ सेना का संहार किया लेकिन मगध देश के ब्राह्मणों की रक्षा हेतु वे पीछे हट जाते हैं।
जामवन्त से युद्ध: श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि चुराने का झूठा आरोप लगा। आक्षेप मुक्त होने के लिये उन्होंने उसकी खोज प्रारम्भ की तथा वे जामवंत के यहाँ पहुँचे। मणि के लिये दोनों में २१ दिन तक मल्ल युद्ध हुआ। बाद में जामवंत को श्रीभगवान का ध्यान आया। उन्होंने हार स्वीकार की और मणि दे दी। साथ ही अपनी पुत्री का विवाह भी श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
भौमासुर (नरकासुर) से युद्ध: भौमासुर ने वरुण का छत्र, माता अदिति के कुण्डल और देवताओं का मणिपर्वत छीन लिया। इन्द्र ने श्रीकृष्ण को भौमासुर की करतूतें सुनायी और सहायता की प्रार्थना की। तब Shri Krishna अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर भौमासुर की राजधानी प्रागज्योतिषपुर (असम) पहुँचे। राजधानी की किलेबंदी बहुत मजबूत थी। दैत्य केसात पुत्र और सेनापति सेना लेकर मैदान में आ गये। श्रीकृष्ण ने उन सभी का संहार किया। भौमासुर स्वयं हाथी पर सवार होकर हाथियों की सेना के साथ युद्ध करने आया। श्रीकृष्ण गरुड़ पर सवार होकर युद्ध करने लगे और अंत में सुदर्शन चक्र से उसका अंत किया।
बाणासुर के साथ युद्ध: एक बार Shri Krishna के पौत्र अनिरुद्ध का अपहरण हो गया। चार मास बाद पता लगा कि उसका अपहरण शोणितपुर के बाणासुर की योगिनी चित्रलेखा द्वारा हुआ है। श्रीकृष्ण बलराम ने यदु सेना को साथ लेकर बाणासुर की राजधानी शोषितपुर पर आक्रमण किया। दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध चला। बाणासुर भगवान शंकर का भक्त था। उसने उनसे सहायता की याचना की। शंकर के पार्षद युद्ध में सम्मिलित हो गये और यदु सेना पर टूट पड़ें बाद में भगवान शंकर ने श्रीकृष्ण से बाणासुर पर दया करने की प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने बाणासुर को शस्त्रविहीन करके छोड़ दिया। अनिरुद्ध को सकुशल लेकर लौट आये।
पौण्ड्रक से युद्ध: Shri Krishna की लोकप्रियता चारों ओर बढ़ रही थी। उनकी मान्यता भगवान वासुदेव के रूप में हो गई थी। उन्हें भगवान विष्णु का अवतार मान लिया गया था। इससे बहुत से राजा ईर्ष्या करने लगे। इन्हीं में करुष राज्य का राजा पौण्ड्रक था उसने घोषणा की कि वही असली भगवान वासुदेव है। उसने भी श्रीकृष्ण की तरह शंख, चक्र, गदा, धनुष व पीताम्बर धारण कर लिया और दूत भेजकर श्रीकृष्ण को चुनौती दी कि या तो अपना रूप छोड़ दो नहीं तो मुझसे युद्ध करो।
श्रीकृष्ण ने उसे सबक सिखाने के लिये रथ पर सवार होकर सेना के साथ काशी पर आक्रमण किया क्योंकि उस समय पौण्ड्रक अपने मित्र काशिराज के साथ था। पौण्ड्रक भी अपनी सेना के साथ मैदान में आ गया। दोनों ओर से अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग हुआ। श्रीकृष्ण ने दिव्यास्त्रों का संधान कर शत्रु सेना का विनाश कर दिया और पौण्ड्रक को ललकारते हुए सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक काट दिया और काशिराज का भी वध किया।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि Shri Krishna सिर्फ माखन चोर या रसिया ही नहीं थे, वे वीर, पराक्रमी व योद्धा भी थे। वे अस्त्र, शस्त्र दोनों में अत्यधिक निपुण थे। उनकी सामर्थ्य में दिव्यास्त्र भी थे। आज राष्ट्र को आवश्यकता है उनके योद्धा स्वरूप के चिंतन की। उन्होंने किस प्रकार आततायी, निरकुंश, अन्यायी व आतंकी राजाओं को युद्ध में पराजित कर उनका नाश किया। हमें भी राष्ट्र रक्षा के लिये आतंकियों के नाश हेतु योद्धाकृष्ण का अनुसरण करना होगा।