Swami Vivekananda Speech: बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वामी विवेकानंद अपनी मुखर आवाज के लिए जाने जाते थे। आज से ठीक 129 साल पहले 11 सितंबर 1893 के दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए ऐसा भाषण दिया था कि दुनिया के लाखों लोगों से भरा वह क्म्यूनिटी हॉल कई मिनटों तक तालियों से गूंजता रहा था। Swami Vivekananda Speech की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों’ के साथ हुई थी।
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1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया उनका भाषण आज भी किसी भारतीय के द्वारा दिए गए सबसे प्रभावी भाषणों में माना जाता है। स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन में सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और हिंसा का जिस तरह से जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि अगर यह बुराइयां न होतीं तो दुनिया आज से कहीं बेहतर जगह होती।
Swami Vivekananda Speech 11 सितंबर 1893
अमेरिका के बहनो और भाइयो,
आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति-संप्रदाय के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से निकला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सभी को स्वीकारने का पाठ पढ़ाया है।
बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके पवित्र धार्मिक स्थल को रोमन हमलावरों ने तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।
मुझे इस बात का गर्व है
कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अब भी उन्हें पाल-पोस रहा है।भाइयो, मैं आपको वैदिक मंत्रों की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से याद किया और दोहराया है और जो करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप अलग-अलग रास्ता चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी रास्ते भगवान तक ही जाते हैं।
वर्तमान सम्मेलन जो कि
आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। सांप्रदायिकता, कट्टरता और हठधर्मिता लंबे समय से इस सुंदर धरती को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने धरती को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है।
कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के दुखों और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
Swami Vivekananda Speech से तालियों की आवाज से गूंज उठा पूरा हॉल
हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते
1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ के साथ जब अपने भाषण की शुरूआत की तो उनकी इस लाइन को सुनने के बाद पूरा हॉल तालियों की आवाज से गूंज उठा और कई मिनटों तक वहां पर लगातार तालियां बजती रह गई थी।भाषण की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा था, ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों, मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परम्परा की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं।’
Swami Vivekananda Speech दोहराया था यह श्लोक
विवेकानंद ने अपने बचपन में पढ़ने वाले श्लोक को दोहराते हुए उसका अर्थ भी समझाया। उन्होंने कहा था, ‘मैं इस अवसर पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं, जो मैंने बचपन में याद किया और जिसे हर रोज करोड़ों लोग दोहराते हैं।’
।।रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।।
Swami Vivekananda Speech: यह श्लोक बोलते हुए स्वामी विवेकानंद ने इसका अर्थ बताया कि जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुन लेता है लेकिन ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हों, पर ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।