Sunday, December 14, 2025

ट्रुडो के पिता खालिस्तान के लिए इंदिरा गांधी से भिड़ गए थे, जानिए फिर क्या हुआ था ?

Khalistan in Canada: 1980 के दशक की एक घटना है। इसमें खालिस्तानी तलविंदर सिंह परमार का नाम पंजाब में दो पुलिस अधिकारियों की हत्या सामने आई, हत्या के बाद वह कनाडा भाग गया था। इस समय के कनाडा के प्रधानमंत्री, जस्टिन ट्रूडो, के पिता पियरे ट्रूडो थे। इंदिरा गांधी ने पियरे ट्रूडो से कहा कि वह तलविंदर को भारत को सौंप दें, लेकिन ट्रूडो ने इसका स्पष्ट इनकार कर दिया, जिससे इंदिरा गांधी नाराज हुई।

3 साल बाद, जून 1985 में, कनाडा के मॉन्ट्रियल से बोम्बे के लिए उड़ान भरता हुआ एयर इंडिया कनिष्क विमान ने एक हमला झेला। इस विमान के सफर में ही एक विस्फोट हुआ और इसमें 329 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 270 कनाडाई नागरिक भी शामिल थे। यह हमला खालिस्तानी समर्थकों द्वारा किया गया था, और इसका मास्टरमाइंड था – तलविंदर सिंह परमार, जिसे कनाडा ने भारत को सौंपने से इनकार किया था।

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पंजाब के लिए अलग-अलग राज्य की मांग पहली बार 1929 में की गई थी। 1947 में, इस मांग को आंदोलन में बदल दिया गया। इसे पंजाबी सूबा आंदोलन कहा गया। 1973 में आनंदपुर साहिब रिजोल्यूशन के माध्यम से स्वतंत्र खालिस्तान की मांग की गई। 1980 के दशक में, खालिस्तान के पक्ष में सिखों का समर्थन बढ़ गया। सिखों का समर्थन कनाडा, UK, ऑस्ट्रेलिया, और अमेरिका में भी बढ़ गया, क्योंकि वहां भी सिख बसे हुए थे, जिससे इसका प्रभाव वहां भी पहुंचा।

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कनाडा में खालिस्तान का सफर, 41 साल पहले शुरू हुआ

26 जनवरी 1982 को, सुरजन सिंह गिल ने कनाडा के वैंकूवर में खालिस्तान सरकार निर्वासित सरकार का ऑफिस खोला। गिल ने नीले रंग के खालिस्तानी पासपोर्ट के साथ ही रंगीन मुद्रा भी जारी की। हालांकि, उन्हें स्थानीय सिख समुदाय के बीच सीमित समर्थन मिला।

सुरजन सिंह गिल का जन्म सिंगापुर में हुआ था और उनकी पढ़ाई भारत और इंग्लैंड में हुई थी। इसके बाद, वे कनाडा चले गए। 1980 के दशक में ही विदेशी भूमि पर बब्बर खालसा और वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन जैसे कुछ अन्य खालिस्तानी संगठन भी बने।

19 नवंबर 1981 को, पंजाब के लुधियाना में दो पुलिस अधिकारियों की हत्या का आरोप खालिस्तानी संगठन बब्बर खालसा के कनाडा के प्रमुख तलविंदर सिंह परमार पर लगा। 1982 में, भारत ने तलविंदर सिंह परमार के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया, जबकि तलविंदर उस समय कनाडा में बसे थे।

1982 में, भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कनाडा के तबके के प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो से मिलकर तलविंदर सिंह को भारत को सौंपने के लिए कहा था। पियरे ट्रूडो ने इस बात का जवाब देते हुए कहा कि राष्ट्रमंडल देशों के बीच प्रत्यर्पण के प्रोटोकॉल लागू नहीं होते, इसलिए वे तलविंदर सिंह को भारत को नहीं सौंपेंगे।

कनाडा के वरिष्ठ पत्रकार और खालिस्तानी आंदोलन पर लंबे समय तक रिपोर्ट करने वाले टेरी मिलेव्सकी ने अपनी किताब ‘Blood for Blood: Fifty Years of the Global Khalistan Project’ में इस घटना का उल्लेख किया है।

उन्होंने विवरण दिया है कि 1982 में इंदिरा गांधी ने कनाडा के तर्क को खारिज करते हुए पियरे ट्रूडो को खारिज किया था। इसका परिणामस्वरूप, कनाडा के विरुद्ध भारतीय राजनेताओं और इंदिरा गांधी पर सभी ओर से आलोचना हुई।

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इसी बीच, 1983 में जर्मन पुलिस ने पंजाब में दो पुलिस अफसरों की हत्या के मामले में तलविंदर को गिरफ्तार किया। हालांकि, लगभग एक साल के भीतर ही तलविंदर को रिहा कर दिया गया और वह कनाडा वापस आ गए।

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जून 1984 में, भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर से खालिस्तानी आंदोलनकारियों को दूर भगाने के लिए ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ का आयोजन किया। इसके परिणामस्वरूप, प्रवासी भारतीयों के बीच खालिस्तान आंदोलन को बढ़ावा मिला।

1984 की गर्मियों में, कैलगरी, कनाडा में 20 कनाडाई सिख एक गुरुद्वारे में इकट्ठे होते हैं। इस दौरान, बब्बर खालसा के शीर्ष आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार ने भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। उन्होंने कहा कि जल्द ही एयर-इंडिया के विमान आकाश से गिर जाएंगे।

परमार की इस भाषण के ठीक एक साल बाद, जून 1985 में, कनाडा के मॉन्ट्रियल से एयर इंडिया कनिष्क विमान ने उड़ान भरी। इस विमान की यात्रा का लक्ष्य बॉम्बे था। रास्ते में, आयरलैंड के तट पर ही इस विमान में ब्लास्ट हो गया। इस हादसे में कुल 329 लोगों की मौके पर मौके में मौत हो गई, जिनमें 270 कनाडाई नागरिक भी शामिल थे।

जाँच में पता चला कि इसका मास्टरमाइंड बब्बर खालसा के चीफ, तलविंदर सिंह परमार था, वही तलविंदर जिसे कनाडा ने भारत को सौंपने से इनकार कर दिया था।

टेरी मिलेव्सकी इस घटना के बारे में विचार करते हैं

कनाडा ने भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को ठुकराने से कुछ प्राप्त नहीं किया, बल्कि वहाँ नुकसान हुआ। उन्होंने उस आतंकवादी तलविंदर सिंह के प्रत्यर्पण का इनकार किया था, जिसने 1985 में एयर इंडिया के कनिष्क विमान को टाइम बम से उड़ा दिया था। इस हमले में सभी 329 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी, और इनमें अधिकांश कनाडियन नागरिक थे।

कनाडा में तलविंदर को भारत में प्रत्यर्पित नहीं करने के लिए प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो पर काफी आलोचना हुई। तलविंदर को कनाडा पुलिस ने पकड़ा, लेकिन कुछ ही दिनों में छोड़ दिया। इसके बाद, वह पाकिस्तान चला गया। इस फैसले से कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादियों के हौसले बढ़ गए, और उन्हें लगा कि अब कोई उन पर हाथ नहीं डाल सकता।

भारत में 90 के दशक में आए काल के साथ ही खालिस्तानी आंदोलन शांत हो गया, लेकिन कनाडा में यह सुलगता रहा। हालांकि, भारत में आलस्यवाद का आंदोलन धीरे-धीरे थम गया, कनाडा में खालिस्तान आतंकवाद अभिवृद्धि करता रहा। कनाडा के टोरंटो में, पंजाबी भाषा में “सांझ सवेरा” नामक साप्ताहिक पत्रिका प्रकाशित होती थी। अक्टूबर 2002 में, इस पत्रिका के पहले पृष्ठ पर एक तस्वीर प्रकट हुई, जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या का चित्रण किया गया था, और नीचे लिखा था, “पापियों की हत्या करने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि।”

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इस पत्रिका को एक मित्र राष्ट्र के प्रधानमंत्री की हत्या को महिमामंडन करने की बजाय, कनाडा सरकार ने आने वाले सालों में “सांझ सवेरा” को सरकारी विज्ञापन देना शुरू किया। “सांझ सवेरा” का संबंध वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन (WSO) से था, जो खुद को दुनिया भर के सिखों का नेतृत्वकर्ता मानता है, और इसका मुख्यालय कनाडा में है।

टेरी मिलेव्सकी की किताब में लिखा है कि WSO ने 2007 तक अपनी वेबसाइट पर उल्लिखित किया था कि उनका संगठन अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर गार्डन में स्थापित हुआ था। इस समय, खालिस्तानी नेता अजैब सिंह बागरी ने एक भाषण में कहा था, “हम तब तक शांति से नहीं बैठेंगे जब तक हम 50 हजार हिंदुओं को नहीं मार देंगे।”

अजैब सिंह बागरी को कनिष्क बम मामले में भी आरोपी माना गया, लेकिन उसे सजा नहीं दी गई। 2000 में, पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया, और केस के दौरान एक गवाह की हत्या हो गई, जबकि एक को साक्षर सुरक्षा में भेज दिया गया।

आखिरकार, दोनों लोगों को रिहा कर दिया गया। केवल बम बनाने वाले इंदरजीत सिंह रेयात को 5 साल की सजा हुई, और 2011 में उन्हें झूठ बोलने के मामले में 9 साल की सजा सुनाई गई।

JNU के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर उम्मू सलमा बावा कहते हैं कि 1990 में लीडरशिप की दौड़ के दौरान, लिबरल पार्टी के नेताओं को वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन और इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन का समर्थन मिला। इस तरह, कनाडाई राजनेताओं को सिख प्रवासी की वकालत करते हुए देखना कुछ नया नहीं है।

2015 में, जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री बनने के बाद, खालिस्तान से जुड़े मुद्दे और भारत-कनाडा के संबंधों में तनाव बढ़ते गए।

नवंबर 2015 में, कैनेडियन लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने 30 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 4 सिखों को मंत्री बनाया। इसके साथ ही, उन्होंने दावा किया कि उनके मंत्रालय में मोदी सरकार से ज्यादा सिख हैं। हालांकि, इन सिख मंत्रियों में कुछ ऐसे भी थे जो खालिस्तान से जुड़े रहे थे, जिसके कारण भारत और कनाडा के बीच के संबंधों में तनाव बढ़ गया।

2017 में, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन पर अलगाववादियों से मिलने का आरोप लगाया। उनसे मिलने का पर्याप्त बख्शिश नहीं दिया गया। एक साल बाद, 2018 में, ट्रूडो भारत की यात्रा पर आए। वहां, एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री मोदी की बजाय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उनका स्वागत किया। इस यात्रा के दौरान, जस्टिन ट्रूडो के खालिस्तान प्रेम का प्रमुख प्रतीत हुआ।

इस बीच, ट्रूडो ने एक और कदम उठाया जिससे भारत के साथ तनाव बढ़ाया गया। 1986 में भारतीय कैबिनेट मंत्री के हत्या के प्रयास के दोषी जसपाल अटवाल के साथ डिनर के लिए न्योता भेजा गया था, जो ट्रूडो द्वारा किया गया था। हालांकि, भारत के विरोध में इस न्योता को बाद में रद्द कर दिया गया। जब सवाल उठे, तो जस्टिन ट्रूडो ने निमंत्रण का दोष एक कनाडाई संसद पर मढ़ दिया।

कनाडा में खालिस्तानियों के वर्चस्व से जुड़े एक और मामला है। दिसंबर 2018 में, कनाडा सरकार ने आतंकी हमले के खतरे के साथ जुड़ी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में पहली बार खालिस्तान आतंक का जिक्र किया। इस रिपोर्ट के आगे, प्रधानमंत्री ट्रूडो और उनके लिबरल पार्टी को धमकी मिली कि वे वैंकूवर में होने वाली वैशाखी रैली में शामिल नहीं हो पाएंगे।

एक साल बाद ही, इस रिपोर्ट के बाद, खालिस्तान और सिख उग्रवाद का जिक्र नए संदर्भ में प्रस्तुत किया गया, जिसके बाद ट्रूडो वैशाखी रैली में भाग ले सके। इस निर्णय पर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने आलोचना की थी, और साथ ही उन्होंने 2018 के ट्रूडो के दौरे के दौरान भारत में वांटेड हरदीप सिंह निज्जर समेत कई आतंकी व्यक्तियों की सूची भी ट्रूडो को प्रस्तुत की थी।

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