वसुंधरा राजे: हाल ही में सी वोटर का एक सर्वे किया गया है जिसमेंं राजस्थान की 2 बार सीएम रहीं वसुंधरा राजे अभी भी राज्य में बीजेपी की सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता हैं। अब राजस्थान में ऐसा कहा जा रहा है कि वसुंधरा अगर धरा पर बैठ गईं तो पार्टी को धरातल पर पहुंचा सकती हैं। लेकिन ऐसा क्यों कहा जा रहा है इसके लिए आपको विस्तार से जानना होगा और विस्तार से जानने के लिए ये आर्टिकल पूरा पढ़ना होगा।
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एक तरफ राजस्थान में विधानसभा चुनावों के संदर्भ में कहा जा रहा है कि बीजेपी ने अभी तक वसुंधरा राजे को कोई खास भूमिका देने का संकेत नहीं दिया है और प्रधानमंत्री मोदी के स्टेज पर उनके समर्थकों की भावनाओं को नहीं मिल रहा है। वहीं दूसरी तरफ वे लोग जिन्हें वसुंधरा के नजदीक से जाना जाता है, कहते हैं कि वह चुपचाप बैठकर तमाशा देखने वालों में से नहीं हैं। समर्थकों के दबाव के कारण बीजेपी अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए कुछ भी कर सकती है।
खबर है कि राजे एक नया दल बना सकती हैं और पार्टी में रहकर भी कई काम कर सकती हैं। चुनाव की घोषणा होने के बाद वे राजस्थान की यात्रा पर निकल सकती हैं और बीजेपी को हानि पहुंचा सकती हैं। लेकिन अगर ऐसा कुछ नहीं होता है, तो भी बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है।
1- राजस्थान में जीत हार का अंतर कम (वसुंधरा राजे)
देखा जाए तो आंतरिक कलह से जूझती कांग्रेस ने अपने मसले सुलझा लिए गए हैं। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विरोधाभास की खबरें आनी बंद हो गईं हैं। अशोक गहलोत के कल्याणकारी कार्यक्रमों को जनता के बीच ले जाया जा रहा है तो दूसरी ओर बीजेपी बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ने की तैयारी में है।
अगर पिछले चुनाव ( 2018) के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 5 प्रतिशत से कम अंतर से करीब 30 प्रतिशत सीटें जीतीं गईं हैं। इससे पहले 2003 और 2008 के चुनावों में तो और भी कड़ा मुकाबला रहा था। उस वक्त कांग्रेस-बीजेपी ने 41.5 प्रतिशत से ज्यादा सीटें मामूली अंतर से जीतीं थीं। यानि साफ है कि अगर वसुंधरा ने 5 प्रतिशत वोट भी इधर उधर किए तो बीजेपी के साथ खेला हो जाएगा।
2- केवल 0.5% वोट कम होने से बीजेपी को विपक्ष में बैठना पड़ा (वसुंधरा राजे)
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार का अंतर कांग्रेस की तुलना में वोट शेयर का महज 0.5% था यानी कुल वोट में कांग्रेस केवल .5 परसेंट वोट से बीजेपी से आगे थी। लेकिन इस बार बीजेपी महिला प्रवासी अभियान के माध्यम से महिला मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिसका मकसद 5 प्रतिशत वोटों के अंतर से हारी हुई सीटों को फिर से हासिल करना है।
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3- महिला वोट और वसुंधरा राजे का समीकरण (वसुंधरा राजे)
हाल फिलहाल में हुए कई चुनावों में महिलाओं के वोट से बीजेपी को महत्वपूर्ण जीत मिली है। जब वसुंधरा राजे राज्य की मुख्यमंत्री थीं तब महिलाओं में पार्टी के सबसे लोकप्रिय चेहरे के रूप में विख्यात थीं। जब पार्टी साथ नहीं है फिर में भारी पैमाने पर महिलाएं उन्हें रक्षा सूत्र बांधने आईं। चुनावों में उनकी मौजूदगी महिला वोटरों को बीजेपी की तरफ खींचने में कारगर साबित होगी। कांग्रेस सरकार में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ने का आरोप लगाकर बीजेपी ने जो माइलेज लिया था वसुंधरा के चलते गंवाना पड़ सकता है।
4- राजपूत, जाट और गुर्जर को साधने की कला (वसुंधरा राजे)
वसुंधरा अपने को क्षत्राणि की बेटी, जाटों की बहू और गुर्जरों को समधन कह कर राज्य में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तीनों जातियों को साधतीं रहीं हैं। राजे के बेटे की शादी गुर्जर समुदाय में हुई है और साथ ही राजस्थान के गुर्जरों के वोट बीजेपी के परंपरागत रूप से मिलते रहे हैं। गुर्जरो के कट्टर प्रतिस्पर्धी मीणाओं के वोट कांग्रेस को मिलते रहे हैं इसलिए गुर्जर बीजेपी को सपोर्ट करते रहे हैं। वसुंधरा ने गुर्जरों से रोटी-बेटी का रिश्ता करके इसे और मजबूत बनाया। इस लिहाज से अगर वसुंधरा बीजेपी से नाराज होती हैं तो गुर्जरों का वोट कांग्रेस की ओर जा सकता है।
5- बीजेपी को 40 सीटों पर वसुंधरा नुकसान पहुंचा सकती हैं (वसुंधरा राजे)
आपको बता दें कि वसुंधरा राजे का पार्टी के संगठन पर तगड़ा असर रहा है। राजस्थान के हर कोने में उनकी पकड़ है। हर विधानसभा सीट पर उनके कुछ लोग हैं, बीजेपी के अलावा कई बार रैलियां कर या यात्राएं सफलतापूर्वक निकालकर उन्होंने इसका सबूत दिया है। जानकारी के मुताबिक वसुंधरा राजस्थान में बीस से पच्चीस सीटों पर बीजेपी को नुकसान पहुंचाने का मादा रखती हैं क्योंकि वसुंधरा पार्टी से टिकट ना मिलने पर अपने समर्थकों को वोट ना देने का इशारा कर सकती हैं। अब माना जा रहा है कि शायद यही कारण है कि बीजेपी वसुंधरा को पूरी तरह से अलग-थलग नहीं कर रही है।
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