One Nation One Election: केंद्र सरकार द्वारा ‘One Nation One Election’ को लेकर एक कमेटी गठित कर दी गई है, यह कमेटी ऐसे समय में गठित हुई है जब आगामी 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र बुलाया जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से देश में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर चर्चा बहुत तेज हो गई है। केंद्र की सरकार ने शुक्रवार (1 सितंबर) को वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी गठित की है, यह कमेटी देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कार्य करेगी। कमेटी देश में एक साथ चुनाव की संभावनाओं को लेकर पता लगाएगी।
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इस कमेटी का गठन ऐसे समय में हुआ है, जब केंद्र ने 18-22 सितंबर के दौरान 5 दिन के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है। इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक इस दौरान केंद्र सरकार कई महत्वपूर्ण विधेयक पेश करने की तैयारी में है, जिसमें वन नेशन वन इलेक्शन भी शामिल है। आज हम आपको वन नेशन वन इलेक्शन के बारे महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं। लेकिन उससे पहले ये जान लेते हैं कि आखिर ये है क्या ? और बीजेपी के लिए यह विषय इतना खास क्यों है।
One Nation One Election के मायने
One Nation One Election का का प्लान देश में एक साथ चुनाव कराए जाने से है। इसका सीधा सीधा मतलब यह है कि पूरे देश में लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। दोनों चुनावों को सम्पन्न कराने के लिए संभवतः वोटिंग भी एक साथ या फिर आस-पास होगी। वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव 5 साल का कार्यकाल पूरा होने या फिर विभिन्न कारणों से विधायिका के भंग हो जाने पर अलग-अलग समय पर कराए जाते हैं।
बीजेपी के लिए क्यों खास है One Nation One Election
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के अन्य कई नेता अलग अलग मौकों पर देश में एक साथ चुनाव की चर्चा कर चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो ये भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा था। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र के पेज नंबर 14 में लिखा गया था, “बीजेपी अपराधियों को खत्म करने के लिए चुनाव प्रक्रिया में सुधार शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
बीजेपी अन्य दलों के साथ परामर्श के माध्यम से पूरे देश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की पद्धति विकसित करने की कोशिश में है। ” घोषणा पत्र के मुताबिक, इससे चुनाव में होने वाले खर्चों को कम करने के अलावा राज्य सरकारों के लिए स्थिरता सुनिश्चित होगी।
एक साथ चुनाव के फायदे
देश में एक देश एक चुनाव कराए जाने के समर्थन में सबसे मजबूत तर्क ये है कि इससे अलग-अलग चुनावों में खर्च होने वाला भारी-भरकम कम होगा। इंडिया टुडे ने अपनी कुछ रिपोर्ट्स में बताया है कि 2019 लोकसभा चुनाव में कुल 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इसमें चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक पार्टियों का खर्च और केंद्रीय चुनाव आयोग की तरफ से खर्च की गई राशि शामिल है।
एक साथ चुनाव के समर्थन में यह भी एक तर्क दिया जाता है कि इससे प्रशासनिक व्यवस्था सुचारू होगी। चुनाव के दौरान अधिकारी चुनाव ड्यूटी में लगे होते हैं, इससे बहुत से सामान्य प्रशासनिक काम प्रभावित होते हैं।
विधि आयोग ने जताया मतदान बढ़ने का अनुमान
पिछले कुछ सालों से यह भी देखा गया है कि हर साल कहीं न कहीं कोई न कोई चुनाव होते ही रहते हैं। चुनाव के दौरान इन राज्यों में आचार संहिता लागू कर दी जाती है, जिससे इस दौरान लोक कल्याण की नई योजनाओं पर रोक लग जाती है। देश में एक साथ चुनाव होने से केंद्र और राज्य की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता रहेगी।
विधि आयोग ने कहा है कि एक साथ चुनाव कराने से मतदान प्रतिशत बढ़ेगा, क्योंकि वोटर्स के लिए एक बार में वोट देने के लिए निकलना ज्यादा आसान होगा।
One Nation One Election के लिए क्या करना पड़ेगा?
लोकसभा और राज्यसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के लिए संवैधानिक संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी। साथ ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और साथ ही अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन करना होगा। तो आइए जानते हैं कि इसके लिए क्या-क्या बदलाव करने होंगे?
One Nation One Election बिल लाने के लिए 16 विधानसभाओं का समर्थन जरूरी होगा यानी पहले देश के 16 राज्यों की विधानसभा में इसके प्रस्ताव पर मोहर लगानी होगी। बिल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत ही अमल में लाया जा सकता है, उसमें बदलाव करना जरूरी होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में 2 तिहाई बहुमत के साथ संशोधन करना होगा।
एक साथ चुनाव को लेकर आशंका
इसको लेकर क्षेत्रीय दलों का बड़ा डर यह है कि वे अपने स्थानीय मुद्दों को मजबूती से नहीं उठा पाएंगे क्योंकि केंद्र में राष्ट्रीय मुद्दे आ जाएंगे। इसके अलावा क्षेत्रीय दल चुनावी खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में भी राष्ट्रीय पार्टियों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे।
क्या कहता है सर्वे?
इंडिया टुडे ने आईडीएफसी संस्थान के द्वारा 2015 में किए गए एक सर्वे के हवाले से यह बताया है कि अगर One Nation One Election लागू होता है तो 77 प्रतिशत संभावना है कि वोटर राज्य विधानसभा और लोकसभा में एक ही राजनीतिक पार्टी या गठबंधन को चुनेंगे। वहीं, अगर यह चुनाव छह महीने के अंतराल पर होते हैं, तो केवल 61 प्रतिशत लोग ही एक पार्टी को चुनेंगे।
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