नानाजी देशमुख: नानाजी देशमुख जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के निधन के बाद नानाजी देशमुख ने अपना पूरा जीवन संघ कार्य के लिए समर्पित कर दिया था। नानाजी ने 1957 तक उत्तर प्रदेश के हर जिले में जनसंघ का कार्य स्थापित कर दिया था। वहीं जनता पार्टी के संस्थापकों में नानाजी देशमुख प्रमुख थे।
HIGHLIGHTS…
नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर सन 1916 को महाराष्ट्र के कडोली में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्हें भारत सरकार ने 1999 में सामाजिक कार्यों के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।
1947 में आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य पत्रिका के प्रकाशन की शुरुआत का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। आपातकाल हटने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में नानाजी देशमुख उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से लोकसभा सांसद चुने गए थे। 94 साल की उम्र में 2010 में उनका निधन हुआ।
नानाजी देशमुख का आरएसएस से संबंध
देशमुख 13 साल की अल्प आयु में ही आरएसएस से जुड़ गए थे। जून 1996 में इंडिया टुडे से बातचीत में उन्होंने कहा था कि 1926 के नागपुर दंगों में RSS ने जिस तरह से हिंदुओं की रक्षा की थी, उसी से प्रभावित होकर वे संघ में शामिल हुए थे। देशमुख को इस बात पर अडिग विश्वास था कि आरएसएस वह माध्यम है जिसके माध्यम से भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकती है। अपने एक साक्षात्कार में, उन्होंने यह भी कहा, “उनका जीवन इसके लिए समर्पित नहीं करता। नानाजी देशमुख आज जो कुछ भी हैं वह RSS के कारण ही है।
उन्होंने आरएसएस की विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए देशभर में सरस्वती विद्या मंदिर स्कूलों की बड़ी श्रृंखला शुरू की। उन्होंने दीन दयाल रिसर्च इंस्टिट्यूट और मध्य प्रदेश के चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की भी स्थापना की, जिसे आज देश का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय माना जाता है। पद्म विभूषण से सम्मानित नानाजी को चित्रकूट में करीब 500 गांवों में उनके कार्यों के लिए जाना जाता है।
राजनीतिक जीवन से लिया संन्यास
1960 में लगभग 60 वर्ष की उम्र पूरी होने पर नानाजी देशमुख ने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया था। और सामाजिक जीवन में पदार्पण किया। 1989 में भारत भ्रमण करते करते नानाजी पहली बार भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट पहुंचे और स्थाई रूप से यहीं बस गए थे। उन्होंने यूपी और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों के 500 से भी अधिक गांवों में सामाजिक कार्यक्रम संचालित किए थे। उन्होंने मंथन (आत्मनिरीक्षण) पत्रिका भी निकाली थी। जिसका कई वर्षों तक KRमलकानी ने संपादन किया। नानाजी ने गोंडा (यूपी) और बीड (महाराष्ट्र) में काफी सारे सामाजिक कार्य किए। उनकी परियोजना का आदर्श वाक्य यह था: “हर हाथ को देंगे काम, हर खेत को देंगे पानी”
राम की कर्मभूमि में लिया संकल्प
देशमुख पहली बार 1969 में चित्रकूट आए थे। इस स्थान पर राम ने 14 वर्षों में से 12 वर्ष निर्वासन में बिताए थे। उन्होंने राम की कर्मभूमि में जाकर वहां के समाज की दयनीय स्थिति को देखा। और तभी नानाजी देशमुख ने पवित्र नदी मंदाकिनी के तट पर बैठकर चित्रकूट के सकारात्मक परिवर्तन का संकल्प लिया। उन्होंने वहां चित्रकूट ग्रामोदय विश्व विद्यालय की स्थापना की, जो भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय माना जाता है।
देहांत के बाद एम्स को दे दिया गया था पार्थिव शरीर
27 फरवरी 2010 को नानाजी देशमुख का देहांत चित्रकूट में हुआ और उनकी इच्छा के अनुसार उनकी पार्थिक देह एम्स को सौंप दी गई। नानाजी ने निधन से काफी पहले 1997 में ही लिखकर दे दिया था कि उनके मृत शरीर को मेडिकल शोध के लिए दान कर दिया जाए।