अब क्यों चुप है विपक्ष ?

अब क्यों चुप है विपक्ष ?

अब क्यों चुप है विपक्ष ? हर बात पर सरकार को घेरने वाला विपक्ष ने तय कर रखा है कि किस किस मुद्दे का विरोध करना है।और किस किस मुद्दे का विरोध नही करना है। पश्चिम यूपी के मुजफ्फरनगर के एक स्कूल में पीछ एक घटना घटी थी। जिसमें एक विकलांग महिला अध्यापक ने पढ़ाई न करने के कारण एक मुस्लिम बालक को कुछ बच्चों से थप्पड़ लगवाए थे। थप्पड लगाने वालों में मुस्लिम छात्र भी था ,परन्तु भारत के विपक्ष ने इस मुद्दे को धार्मिक रूप देकर सरकार को घेरने का पूरा प्रयास किया था।

ऐसी ही घटना पश्चिम यूपी के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र सम्भल में घटी। जिसमें एक महिला अध्यापक ने एक छात्र को कुछ बच्चों से पिटवाया। इस घटना पर एक शब्द भी विपक्ष के किसी नेता ने नही बोला है। इसका कारण केवल इतना है कि सम्भल में पिटने वाला छात्र हिन्दू है और पीटने वाले छात्र व महिला अध्यापक मुस्लिम हैं।

मुजफ्फरनगर में जब हिन्दू विकलांग महिला अधयापक द्वारा जब ऐसी घटना हुई तो सपा नेता अखिलेश यादव, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकाअर्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा, ओवेशी सहित कई नेताओं ने इसके लिए सरकार को दोषी बताते हुए कहा था कि ये घटना सरकार की धार्मिक रूप से नफरत वाली राजनीति का ही परिणाम है।

अब जब ऐसी ही घटना मुस्लिम अध्यापक द्वारा की गई तो विपक्ष की शांति क्या दर्शाती है।

सब समझते हैं, भारत के विपक्ष की राजनीति बिल्कुल स्पष्ठ है ।मुद्दा चाहे कोई भी हो ,कैसा भी हो आरोपी मुस्लिम नही होना चाहिए। आरोपी अगर मुस्लिम है तो सब आरोप निराधार है। इससे पहले भी कई मुद्दों में ये सब देखा गया है।शोभायात्राओं पर हिंसा करके हिंदुओ को मारने पर विपक्ष चुप,दिल्ली में दलित लड़की साक्षी को मुस्लिम द्वारा सड़क पर अनगिनत चाकू घोंपकर मारने पर विपक्ष चुप,महाराष्ट्र में दो बुजुर्ग साधुओं को पुलिस के सामने मुसलमान युवकों द्वारा लाठी डंडी से सड़क पर पीटकर मार दिया विपक्ष चुप, कन्हैया नामक टेलर को मुस्लिम युवकों ने अल्लाह हु अकबर के नारे लगाते हुए गला काटकर मारा और उसकी वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित की विपक्ष चुप।

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ऐसे अनगिनत घटनाएं घटी है जंहा आरोपी मुस्लिम होने पर विपक्ष मौन धारण कर लेता है। भारत की जनता अब सब समझने लगी है। सरकार पर धार्मिक रूप से भेदभाव का आरोप लगाकर तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले विपक्ष को जनता द्वारा ही जबाव दिया जाना चाहिए।

लेखक- ललित शंकर,

जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, वह सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय बेबाकी से रखते हैं।

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